Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 61
________________ ५६ अनुसन्धान ४७ ओक घडी सुरदुंदुभिजी, जो न सुणत कान, तो ते जीरण लेतो सहीजी, उत्तम केवळज्ञान, जगत... ॥२८॥ देवलोक वर बारमेंजी, जीरण घाल्या बंध, विण [दांन] दीधेथी फल्योजी, उत्तमस्युं संबंध, जगत... ॥२९।। दांन दीयों सुपात्रनेंजी, नि:फल कदीय न होय, दांन दीयों जीणें साधुनेंजी, जीरण ज्यूं फल जोय, जगत... ॥३०॥ इम जाणी अनुमोदनाजी, दांन सुपात्र रसाणी दांन दीयों जीणें वीरनेंजी, ते नमें मुनि माल, जगत... ॥३१।। ॥ इति श्रीमहावीरपारणास्तवनं सम्पूर्णः (म्) ॥श्री।। आवरणचित्र-परिचय प्रथम अने चतुर्थ मुखपृष्ठ पर छापेल चित्रो प्रसिद्ध 'मधुबिन्दु'ना दृष्टान्तनां चित्रो छे. वडनी वडवाई पर लटकतो पुरुष, वड परना मधपूडामांथी टपकतां मधनां टीपांनो रसास्वाद लेवामां एवो तो लोलुप अने तन्मय छे के ते वडवाईने बे उंदर कापी रह्यां छे, ते वृक्षने उखेडवा हाथी मथी रह्यो छे. तेना पग नीचे ऊंडो कूवो छ ने तेमां ४ नाग-नागण फूफाडा मारतां त पडे तेनी प्रतीक्षामां छे, ते बधांनी तेने कशी ज परवा नथी. वळी, ऊपर ओचिंता आवी चडेल दैवी विमानवाळां तेने बचाववानुं कहे छे तो ते प्रत्ये पण ते दुर्लक्ष्य सेवे छे. संसारनी विचित्र के वरवी वास्तविकतानो बोधप्रद परिचय आपती आ रूपक कथानां आ चित्रो छे. प्रथम चित्र १६मा शतकनी हाथपोथीनुं छे. बीजुं चित्र जैन देरासर (लक्ष्मीपुरी, कोल्हापुर) नी भीत पर आरसमां थयेल सुरेख 'इनले वर्क'नी तसवीर छे. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86