Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ मार्च २००९ ६१ विवेकशेखर गणिराया, लही मोज नमू निति पाया; विजयशेखर गणि गाविं, बारमासे आनंद पावि. ॥२३|| का० इति श्री नेमनाथ-राजेमती बारमास संपूर्णः ।। श्रीस्थूलिभद्रनुं चोमासूं ॥ राग - मल्हार || सुंदर पाडलीपुर सिरोमणि, नंद नरपति हेव, सिकडाल मंत्रीसर घरई, लाडिली लाछिलदेवे, तास कूखइ-सरोवर-हंसल, चित वालिउ भोग-विलासि, सिर धरी गुर-सीख आवीयउं रहिउ कोसि-मंदिर चउमासि ॥१॥ सखी आउरे मेरे प्रीतमकू वेगि वधावि, हीडोलणि सोहि थूलिभद्र रिषिराज. आंकणी० चिहुं दिसई चमकि दामिनी, कोकिला करती सोर, गगनि रजि मेघ उनयउ, मोदि बोले मोर, प्रीउ प्रीउ चवि मुखि बाबीहा, विरहणिकुं वधिउ साल, आसाढि आस्या पुरउ नाहा, कठिन ए वरिषा-काल. ॥२॥ स० खीण झडि मंडि झरमरि वरसतउ, घनघटा करि अति घोर, सर भरियां गिर-नीझरण श्रवई, रतिरायनूं बहु जोर, हरीयालडी पुहवी भई, विस्तार वेला वास, मालती केतकी महिमहि, सनेही श्रावण मास. ॥३॥ स० भाद्रवु भोगी मझ दहि, योवन वहि जलधार, परदेस पीआ पंथीया, पदमनि प्रेम संभारि, सारंग राग मल्हार सारउ, गाईयइ दोइ गेलि, पुरवणी कंता प्रीति पालउ, मोहन रहउ मन मेलि. ॥४॥ स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86