Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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६०
अनुसन्धान ४७
अब सखी नेम विसाखई, सिद्धि रमणी सिउं चित्त राखइं; चूया चंदन तपि गाढा,
आयउ स्यामसुंदर बोलइ टाढा. ॥१६॥ का० अब सखी जेठा मासे, बिन काजि फिरि उदासे; सूरध पीलू झलवाइ,
क्रीडा कुसमकी करउ मन भाइं. ॥१७।। का० अब सखी आसाढ सोहि, गयणे माधव जनमनमोहि; प्रिउ प्रिउ बोलि बाबीहा,
नेमना विन जाइ दीहा. ॥१८॥ का० दुःख वीसारन राजे, पीछई मिलन कि काजे; श्री गि[र]नारिइ प्रीयु पायउ,
पेखी नयनई अतिहिं सुहायउ. ॥१९॥ का० राजुलि राणी सोहागिनि, करी यदुपति अपनी रागिनि;
नयक न मायउ- न मोहिइ (?)
. दोय सिवमिदरिं आरोहई. ॥२०॥ का० अजरामर पद सारा, दोय भोगवि सुख सुविचारा; मूरति की बलिहारी,
सिवादेवी सुत ब्रह्मचारी. ॥२१।। का० नेम राजुंलि पालिउ नेहा, तिम चतुरा हुयो गुणगेहा; राखउ जिनजी सिउं रंगा,
नाम निरमल हि जलगंगा. ॥२२॥ का०
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