Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 47
________________ ४२ अनुसन्धान ४७ मांस तली बेहुं मिली जीव० षांतिसुं बेहुं खाय करम० । पूछें मा पुत्री भणी जीव० अचरिज अधिकैं आय करम० ॥ १८ ॥ बीजा दिन हूंती बहू जीव० मीठौ लागें मंस करम० । ताहरैं जम्माई तणौ जीव० पग जाणे परसंस करम० ॥ १९ ॥ वातां सुणिनैं विमासीयौ जीव० तेतौ माहरी नारि करम० । अहो चरित असती त जीव० पामैं कोइ न पार करम० ||२०|| आणा आयौ हुतौ जीव० जीवितसम हुं जाणि करम० तिण कुसती लज्जा तजी जीव० पाड्या माहरा प्राण करम० ॥ २१ ॥ कालौ मुंह कुनारिनौ जीव० तिहांथी पाछौ भागि करम० । सुस्थितजीरौ शिष्य हूऔ जीव० आणी मन वैराग करम० ||२२|| अतिभय वातां सांभरी जीव० अतिभय कह्यौ वचन्न करम० । अभय कहैं अणगारजी जीव० धन्नाजी थे धन्न करम० ||२३|| इति धन्ना - ऋषीश्वरसम्बन्धस्तृतीयः । दोहा चौथौ शिष चौथैं पहुर सदगुरुनी करि सेव । कहतौ मुखि भयातिभय आयौ थानक हेव ॥१॥ कर जोडी मुह तौ कहैं जोनकजी तुम्हे जाण । केहौ अम्ह भयातिभय इण निरभय अवसाण ||२|| चीता आयौ घरचरित साधु कहैं मुझ तेह | कहैं मुहतौ किरपा करी मुझ संभलावौ एह ||३|| ढाल-आठमी ( नेमिप्रभु माहरी वीनतीजी - एहनी - ) वीतग एहवी वारताजी सांभलौ अभयकुमार । नयरि उज्जेणि माहे वसैंजी धनदत्तनाम विवहार ||१|| वीतग एहवी वारताजी - आंकणी । वीतग० ||२|| भामिनी तासु भद्रा भलीजी तेहनौ पुत्र हूं तेम | श्रीमती माहरी सुंदरीजी परम धरती मुझ प्रेम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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