Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ ४६ अनुसन्धान ४७ मान्यौ बैंण न माहरौ केही हठ कुनारि । चाढ्यौ पहिली चौतरै गाड्यौ छै कोई जार ॥५॥ चंडी सुणि रीसैं चढी हुं पिण नाठौ ऊठि । ऊकलतौ घृत लेहरौ नांख्यौ माह पूठि ॥६॥ मातपिता घरि हुँ गयौ दाधी माहरी देह । अधिकै हेत उपाय करि सज्ज कीयौ ससनेह ॥७॥ मैं दीठा महिलातणा एहा चरित अनेक । वैरागैं मन वालि. व्रत लीधौ सुविवेक ।।८।। चीता आई ते दशा मांने तुं मंत्रीस । भणीयौ तेण भयातिभय कारण विसवावीस ॥९॥ ढाल-दशमी (मनगमतौ साहिब मिल्यौ- एहनी-) संबंध च्यारांरा सुण्या धरतां इम ध्रमध्यानो रे । परभाते हिव पारीयौ पोसौ अभयप्रधानो रे ॥१॥ उपासरासुं ऊठिनैं आयौ अभयकुमारो रे । आचारिजनैं वंदतां कंठें दीठौ हारो रे पुण्य० ॥२॥ धन आचारिज शिष्य धन लोभ न धरै लिगारो रे । तृणमणि सिरखा तेव. एहनौ धन अवतारो रे पुण्य० ॥३॥ पोसाना परतापथी मैं पिण लाधौ हारो रे ।। सहुनें धरम फलैं सही आणे जो इकतारो रे पुण्य० ॥४॥ दिल सुध सांभलि देसना ते दिन सत्तम जाणी रे । हार दीयौ श्रेणिक भणी अभयकुमार आणी रे पुण्य० ॥५॥ चित हरखी अति चेलणा हाथे आयौ हारो रे । बुद्धिइं अभयकुमार री सोभा कहैं संसारो रे पुण्य० ॥६॥ इक दिन अभयकुमारनैं कहैं श्रेणिक महाराजो रे । सहु पुत्रोमैं सकज(?) तुं लैं हिव माहरौ राजो रे पुण्य० ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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