Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 52
________________ मार्च २००९ हिव श्रेणिक राजा भणी बोलें अभयकुमारो रे । मो आर्गै श्रीवीरजी युं कहीऔ निरधारो रे पुण्य० ॥८॥ चरम उदायन राजऋषि दीक्षा लोधी सारो रे । आज पछें नृप को नही लेस्यै संजमभारो रे पुण्य० ||९|| राज न ल्युं तिण वासतें तुझ वैंरागैं मन्नो रे । आपौ मौनैं आगन्या ज्युं चारित ल्युं तन्नो रे पुण्य० ॥ १० ॥ राजा कहैं जीवां अम्हे वसि तां लगि घरवासो रे । नयणे तुझ निहालतां अम्ह अति होइ उलासो रे पुण्य० ॥ १ ॥ दोहा कुमर कहैं सुणि तातजी ए माहरी अरदास । दीक्षा हुम्कम कि दिनैं देख्यै ते परकास ||१|| राजा कहैं हुं जिण दिनैं जा जा कहि घुं सीष । ते अनुमति जाणी करी तिण दिन लेजे दीख ॥२॥ अभय विचारैं एहवौ देखुं कोई दाव । हिव जोड्यौ ते किणविधें पामैं व्रत प्रस्ताव ॥३॥ ढाल - इग्यारमी ( गोठलस (सोरठ ?) देसे सेतुंजैं हाली घरथी इक छकडन घाली रे गोठ० एहनी - ) ४७ चित चौखें चलणा राणी जिनधरमिणि जग सहु जाणी रे चित० तिण समय अनैं तिण कालेँ सबलौ पर्डे शीत सीयालै रे चित० ॥१॥ पडतैं अतिसबलै पालैं बहु नीला वनखंड बालै रे चित० । मुनि ऊभौ इक काउसग्गै थिर थंभ ज्युं ध्यान अथगौरे चित ॥२॥ वीर वांदि नइ वलतां राणी वंद्यौ ते आदर आणी रे चित० । वांदी अपर्णै घरि आवैं धन धन ते मनमैं ध्यावैं रे चित० ||३|| उणहिज दिन महलांमाहे सूती नृपसहित उठा हे रे चित० । रहीमैं इक हाथ उघाडें जो रैं ठाठरीयौ जा रे चित० ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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