Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ मार्च २००९ ३७ अंग देशमैं गाम इक वसुं तठे हुं वास । जाति कलंबी जर घणी नारी रूप निवास ॥४॥ रंगै उम्मंगैं रहां हिय पूरंतां हाम । पल्लीपति मैं पांचसुं आयौ लुटण गाम ||५|| लुंटीनै सगलौ लीयौ माहरा घररौ सार । तिण खिण चोरांनैं विटल बोली म्हारी नारि ॥६॥ जौ थे मोनैं आदरौ राखौ रुडी रुस । तौ थाहरे साथै हुर्बु पूरौ म्हारी हुँस ॥७॥ हुं मुझ घर नै हर्णै छिपि बैंठो तिणवार । कामिणि जाणे किहांइकै नाठौ मुझ भरतार ||८|| चोर लुंटीनैं चालीया सुंदरि लीधी साथ । लाज लगाम तड्यां पछै नारी किणरैं हाथ ॥९॥ चोरे जाण्यौ नही फॐ वामा ए शुभ वेस । तरै जाइ कीधी तुरत पल्लीपतिनैं पेस ॥१०॥ ढाल-पांचमी (प्रीतम सुणि मोरा-एहनी-) गाम अम्हारौ फिरि वस्यौ स्त्री विण रहुं तिण ठौर रे सुणिज्यो सुखकारी। एक दुख नैं हासौ घरे लोक संतानै जोर रे सुणिज्यो सुखकारी, आंकणी ॥१॥ संताः परिजन सहू फिट फिट करें मुझ कोर रे सुणि० । नारि ही राखि सक्यो नही माणस नही तुं ढोर रे सुणि० ॥२॥ विविध वचन श्रवणे सुणी मुझ जाग्यौ अहंकार रे सुणि० । चालिनैं गाम चोरांतणे पहुतौ हुं तिणवार रे सुणि० ॥३॥ इक डोकरडीरें घरै दिन रहीयौ दुइ च्यार रे सुणि० । एक दिन मैं बूढी भणी कहीयौ घर-अधिकार रे सुणि० ॥४॥ पल्लीपति इण पुरधणी मुझ नारी तसु गेह रे सुणि० । कहि संदेसौ जाइनैं इक दीनार लैं एह रे सुणि० ॥५॥ कहिजे तुझ पति आवीयौ वात कहे तुं वणाइ रे सुणि० । बूढी पल्लीपतितणी नारीनैं कहे आइ रे सुणि० ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86