Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 43
________________ अनुसन्धान ४७ एह वचन कहीया उठे सुंदरि थारौ सामि रे सुणि० । माहरै घरि आयौ अङ्कु सुव्रत जेहनौ नाम रे सुणि० ॥७॥ नीसासा नांखें अछै दुख थारै दिलगीर रे सुणि० । सगलांसुं विरतौ थको नयणे वरसैं नीर रे सुणि० ॥८॥ कांइक पघली कामिणी बूढीनैं कहैं आम रे सुणि० । आज पल्लीपति चालि. जासी अलगैं गाम रे सुणि० ॥९॥ तुं पतिनैं कहि जायनैं सांझैं आज्यो अवश्य रे सुणि० । आवी न सकुं हुं उठे पडीय अर्छ परवश्य रे सुणि० ॥१०॥ मुझनैं बूढी आय. वात कही समझाय रे सुणि० । पल्लीपति चाल्यौ परौ मुह अंधारौ थाय रे सुणि० ॥११॥ नारी पासैं हुँ गयौ खरी हुई खुस्याल रे सुणि० । मोसुं प्रेम धरे मिली नजरसुं कीधी निहाल रे सुणि० ॥१२॥ दीवा कीधा दुहं दिसी मुझ बैंसाण्यौ पलिंग रे सुणि० । आगैं बैंठी आयनैं चरण धोवै मुझ चंग रे सुणि० ॥१३॥ लाग जोग आयौ भलां प्रीतम जीवन प्राण रे सुणि० । हुं तुम्ह पगरी पानही बोलैं एहवी वाणि रे सुणि० ॥१४|| केई वात इसी कही पाथरही पथलाय रे सुणि० । पल्लीपतिनैं चालतां शकुन मुंडा तिहां थाय रे सुणि० ॥१५।। पल्लीपति पूठौ वल्यौ आयौ निज घरबार रे सुणि० । खोलि किमाड कहैं खडौ पडीयौ करें पुकार रे सुणि० ॥१६॥ पल्लीपति फिरि आवीयौ कामिणि कहैं मुझ आय रे सुणि० । हुं बोल्यौ मुझने परौ छानी ठाम छिपाय रे सुणि० ॥१७॥ पलिंग नीचें घालीयौ खाट पछेडौ संबाहि रे सुणि० । अंगना बार ऊघाडीयौ आयौ पलीपति माहि रे सुणि० ॥१८॥ ढाल- छठी (करम परीक्षाकरण कुमर चल्यौ रे- एहनी-) पल्लीपतिनैं कहैं माहरी पिया रे वारू नेहरी वाहत (वात) थां आयां विण क्युं करि जावती रे खट मासां सम राति मौहैं मातौ युं करें मानवी रे ॥१॥ आंकणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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