Book Title: Antardvando ke par
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ स्वस्ति वाक् भगवान गोम्मटेश्वर मूर्तिप्रतिष्ठा - सहस्राब्दि - महोत्सव के उपलक्ष्य में क्षेत्र के पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सामयिक परिस्थिति को चलचित्र के माध्यम से प्रचार करने के लिए 'अन्तर्द्वन्द्वों के पार : गोम्मटेश्वर बाहुबली' का प्रस्तुतिकरण आपका एक महान कार्य बन गया है । आपके द्वारा लिखित इस कृति को हमने आद्योपान्त पढ़ा । विषय सामग्री पुरातन होने पर भी संकलन की कुशलता और प्रस्तुतिकरण की क्षमता अनोखी है । आपने इस ग्रन्थ में श्रवणबेलगोल के बारे में कई दृष्टिकोणों से खोजपूर्ण अध्ययन के द्वारा सरल, सुबोध भाषा में, नवीनतम शैली में इस क्षेत्र के इतिहास को प्रस्तुत किया है । मुझे इस विषय का हर्ष है । निस्सन्देह इस क्षेत्र के इतिहास hat fजस खूबी से आपने प्रस्तुत किया है, उस तरह आज तक किसी ने भी प्रस्तुत नहीं किया । अध्यायों के वर्गीकरण की क्रमबद्धता और शीर्षक पाठकों के लिए अत्यन्त आकर्षक सिद्ध होंगे। शिलालेखों के अध्ययन के लिए चार काल्पनिक पात्रों के एक दल को आपने चित्रित किया है, वह अपूर्व परिकल्पना है । इसे हम आपके अनोखे चिन्तन की भक्ति मानते हैं, जिसे पढ़कर हमें इतना हर्ष हुआ कि मानो वे चारों चन्द्रगिरि पर संभाषण करते दिखाई दे रहे हैं। परिशिष्टों का संकलन भी एक अभूतपूर्व कार्य हुआ है । - भट्टारक श्री चारुकीति स्वामी, श्रवणवेल्गोल

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 188