Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 7
________________ अनेकान्त/4 और महा जनपदों के रूप में पुनर्व्यवस्था हुई। इसकी जड़ें अब तक ज्ञात लगभग 4000 ईसा पूर्व तक के इतिहास में निहित हैं तथा वे पूर्ववर्ती चतुर्थ हिम युग के काल तक जाती हैं, जिसका इतिहास भी अब तक अल्प ज्ञात ही है। ___ मानव समाज के सर्वाधिक प्राचीन इतिहास "ऋग्वेद" का संकलन-सम्पादन लगभग 1000 ईसा पूर्व में हुआ था, जिसमें दस मंडल, 1006, सूक्त तथा 10280 ऋचायें हैं। इनकी रचना श्वेतवर्ण के मूल आर्य ब्राह्मण ऋषियों तथा व्रात्यस्तोम पद्धति से बलात् धर्म-परिवर्तन कराकर श्रमणों से आर्य बनाये गये कृष्ण वर्ण के ऋषियों द्वारा की गई थी। वस्तुतः ऋग्वेद के अधिकांश 627 सूक्त और 6702 ऋचायें तो श्रमणों से बलात् ब्राह्मण बनाये गये कृष्ण वर्ण के धर्मपरिवर्तित ऋषियों द्वारा रचित हैं, जबकि श्वेतवर्ण के मूल आर्य ब्राह्मण ऋषियों द्वारा रचे गए केवल 354 सूक्त और 3322 ऋचायें ही हैं। मिश्रित रक्त के भार्गव ऋषियों के रचे हए तो मात्र 20सूक्त तथा 313 ऋचायें ऋग्वेद तथा अन्य वेदों में जनपदों का उल्लेख नहीं मिलता है। यह तो चिरागत श्रमण परम्परा की विशिष्ट राजनैतिक एवं सांस्कृतिक-सामाजिक व्यवस्था थी जो पुराकाल में सुदीर्घकालीन देवासुर संग्राम के कारण नष्टभ्रष्ट हो गई थी तथा द्वापर युग में बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) के तीर्थकाल के अन्तिम चरण में इसी जनपद व्यवस्था की श्रमण धर्म के पुनरुत्थान के साथ ही पुनस्थापना और प्रत्यावर्तन हो रहा था। यह तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ के तीर्थकाल का आरंभ 10वीं-9वीं शती ईसा पूर्व का युग था। इसे उपनिषद काल भी कहा जाता है। सर्वप्रथम ब्राह्मण ग्रंथों में जनपदों का उल्लेख मिलता है। ब्राह्मण ग्रंथ काल में धीरे-धीरे इन जनपदों का महा जनपदों के रूप में प्रत्यास्थापन ओर पूर्ण विकास होता चला गया। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार, महाजनपदों का युग 1000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक रहा। महा जनपद वस्तुतः राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन का आधार बन गये थे। इनकी संख्या घटती बढ़ती रही है। पाणिनी की अष्टाध्यायी4 में 22 जनपदों (संघों) का उल्लेख आया है। बौद्धग्रंथ-महावस्तु में केवल सात जनपदों का वर्णन मिलता है। बाद में आपसी संघर्ष और साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण जनपदों की संख्या कम होने लगी थी। बड़े-बडें जनपदों ने छोटे जनपदों पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया और इस प्रकार महा जनपदों का उद्विकास हुआ। पार्श्व-महावीर-बुद्ध युग में 16 जनपद विद्यमान थे। प्रसिद्ध जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और बौद्ध प्रसिद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में इनका विस्तृत विवरण मिलता 2 Ram Chandra Jam, Advocate, Sri Ganga Nagar Rajasthan. He has writtern 157 History Books, some published by Chouk hambla, Varansl; Agam Kala Prakashan, Delhi: Mohanlal Banarsi Das Dethi. etc. 3 डा. वासुदेव शरण अग्रवाल के महाजनपद विषयक विचार । 4. पाणिनी-अष्टयायी। 5. भगवती सूत्र। 6 अगुत्तर निकाय।

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