Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ राग के उपक्रम राग और वैराग्य दोनो परस्पर विरोधी हैं और दोनों एकत्र नहीं रह सकते। पर आज स्थिति ऐसी बनाई जा रही है कि दोनों एक जगह बैठे। वैराग्य मार्ग में चलने वाला मुनि, प्रायः राग में लीन हो रहा है-वह यश धन संस्था और मठ व श्रावक परिवार की ओर आकर्षित है। और राग में स्थित श्रावक उक्त वेरागी बनाम रिषी मुनि के राग को पुष्ट करने में लगा है-वह साधु को हर प्रकार के आधुनिक निर्मित सुखमय उपकरणो के जुटाने में लीन है। उसे आशीर्वाद चाहिए। पर 'ज्ञानध्यान तपोरक्त' साधु में कदाचित आशीर्वाद देने की शक्ति फलीभूत हो जाती है यह उसे मालूम नहीं है। और आज के कितने साधु ऐसे हैं जो ज्ञान ध्यान तप में लीन रहते हो। प्रायः उनमें अधिकांश अपनी ख्याति प्रतिष्ठा और सांसारिक उपक्रमों--जैसे प्रचार सस्थान मठ धन संग्रह आदि के मोह में लिप्त देखे जाते है। उदाहरण के लिए उनके जन्मदिन दीक्षादिन उन्ही की उपस्थिति में ठाठ से मनाए जाते हैं जैसे कि गृहस्थों में अपने सम्बधियों के निमित्त से मनाए जाते हैं। चौबीस तीर्थकर हुए हैं उनके जीवन काल में एक बार ही जन्म, तप आदि उपक्रम पढे सुने गए है और वह भी उनकी स्वय की रूचि से नहीं हुए जबकि आज के मुनियों के जन्म तप के दिवस प्रतिवर्ष प्रायः उनकी उपस्थिति मे मनाए जा रहे है और बड़े-बड़े कीमती पोस्टरो मे उनके फोटो प्रचारित किए जाते हैं। हालाकि हमने स्वयं अनेकों उन चित्रो को लोगों के पैरो तले, अशुचिस्थानों तक में देखा है। चाहे नतीजा अविनयरूप मे हो, पर तत्कालिक नाम तो हो ही जाता है। अस्तु- हमें तो ऐसा दिखता है कि भविष्य मे मुनियों के जन्म तप आदि के दिन इनके जन्म कल्याणक और दीक्षा कल्याणक का नाम ही न लेले । लोग इसे सोचे-वैसे ये परमेष्ठियो में तो गिने ही जाते हैं। संपादक

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