Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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सारस्वत ब्याकरण के टीकाकार और मकर-उल-मलिक पुंजराज श्रीमाल
पृथित विपुल श्री श्रीमालान्वय वा विशेषक:, रसासित (रसोल्लसित) या गिरा चतुरचित्त मानन्दयन्, सकल जगती जाग्रतकीर्ति सुधीनर सूयकः । सकलामु कलासु यः कलित केलि केली। प्रमित विभवो गोवा साधस्ततोऽजनि,
कौतुहलो विमस्मरतया दयनिखिल शास्त्र तत्वज्ञ(जाता, जानकी भाणवरण प्रेमानन्दाचित सात्त्विकः ।।४।।
करोति करुणाकरो व (घ)न मनीस (पि) न्यनतां ॥१॥ तत्सुतः शोभित संपत् प्रीणितावनि वनीपक पासीत् ।
प्रतिगृहमभिगम्य स्वर्ण (निष्कानितानां) तिथापिताना विभवप्यविकृतीभवि मूर्तिः पुण्यराशिरिव यापच (एव) मुपचित कुन काना (कनकाना) मोदकाना प्रदानिः ।
विदलित दुःख (ग्वं.) स्थानाक्ष्य सस्थान् गृहस्थान्, प्रभात कटम्ब स्थितिभारधारिणी मदीयदीप सहधर्मचारिणी। प्रतलित महिमा यः श्याम (दुभिक्ष) कालेऽभ्पनंदत् ॥१६॥ सदादानाव नदीक्षयाजन कुशेशयाकारशिया पुपोष या ॥६॥
अनिवारित वाछितार्थ दानं रिति तन्नंदनो समिति (सभित) साधित पौरषार्थों,
दुभिक्षतयोदिताना (बभूक्षयादितानां) । चापनिमग्न जनतोद्धरणे समर्थः ।
गणशः समुपेयुषो (येषा) जनानामकरोज्जनि ख्यातंर्गुणः जगति जीवन मेघ सज्ञा,
तरति रक्षण यदेकः (जीवितरक्षणं यदक:) ॥१७॥ वशी वशीकृन्नपो सत्कृपावभूतम् ॥७॥
मने को (कशो) येन विधीयमानस्तुलादि श्रीविलासमति मंडपदुर्गे स्वामिनि खिलचीसाह ग्यासात् ।
दान रूपलब्ध मात् (स) प्राप्य मंत्री पदवीं भधियाभ्यामजितोऽजित परोपकृत विद्वज्जनो वीथि (दीपाति) विवंधमानः श्री भारनिधि
(क्षत) श्री ॥८॥ शिष्यति (भारतिमनिधिमप) मोरूपम् । १८।। जीवनोभूवन पावन कीतिः मत्रीभारमनुजे विनिवेश्य ।
विवधानभिनदितो विपक्ष क्षितिभन ब्रह्मविस्मः जगदीश्वरपूजको कौतुकेन समय समनपीत् ।।६।। ज्ञातपरो (ग) प्रजमम्य यस्य । नमदनि ममर्थो तत्व विज्ञानपार्थः
उदयाधि वा (व) प (4) माथुशमस्परि (र) सुजन विहिततोपः (तापः) धीनिधिर्वीत दोषः ।
नारि नरने भूरि वर्ष. ॥१९॥ अवनिपति शरपान (त) प्रौद्ध धर्मार्थ (घरमेघ) मत्री श्रीव्यास्या विशेपान्नयन प्रमगात थीप जगजो यदिहाभ्यधत्त
मफरल मलिकाव्य श्री गयासादवापः ॥१०॥ अविस्तर (अविस्त) चारुनिवेशिताथं (विनिश्चितार्थ) पतिव्रता जीवन धर्मपत्नी धन्धामक नाम कुटम्बमान्या।
सर्व समूलं (समपेक्षित) समयिक्तित तत् ।।२२।। श्रीष जगजायमसूत पूष मुजवतस्तः नरित: पवित्र ॥११॥ प्रात्मयक्ति बलशालिना वा विस्तारान्मम विभेति भारती।
जयति मदन शुद्धः सज्जन प्रेम सान्द्रः (माधुः) तेन दुर्नय निवारणोचिते पूर्व कोविद मने निलयात् ॥२३॥ सगुणमणि समुद्रः कीति विद्योत चन्द्रः ।
गर्वोज्ञान निमीलिततया मालिन्य मर्थेषु ये नयन विनय निद्र. (नयाना) पुण्य लक्ष्मी ममुद्रः समृद्धष्वपि तत्त्वतेन तद्धाकारः परीक्षाविधी। समरसमयरुद्र. पुंजराजो नरेन्द्रः ॥१२॥
किन्त्येते गुणदोषयो., समदशो वैराग्य निष्ठा इव, यस्याः सभाभाति तिरस्कृतमदः प्रह्व (भू द्वि(प्र)भावोद्धरः। श्रेष्ठाः हत पराक्ति निष्पृह धियस्तस्मादमीभ्यो नमः ।।२४ क्षोणी मडित मडलेश्वर महाराजन्यमान्यात्विता ।
इति श्री मालभार श्री पुजराज विनिर्मिता सारस्वविद्यावृन्द विनोदमोद विभवद्रोमांच विद्वदचो.
तस्य टीका समाप्ता। सं. १६४५ वर्षे प्राषाढ़ मासे कृष्ण जाग्रदूप सरस्वती निवसति लक्ष्मी विलासायिता ॥१३॥ पक्षे षष्ठ्यां तिथौ बुरुवासरे लिखित मिदम् । अनुजे गुणवत्युदारचित्ते गुरुदेव,
नोट - कोष्टक मे पाठभेद लिखा है जो श्री प्रगरचन्द जी द्विजभक्तिभाजि पुजे (मुंजे) ।
नाहटा की प्रति से प्राप्त हुआ। यत्तुपहित (दुपाहित) राजकार्यभारः
६८ कुन्तीमार्ग, विश्वासनगर, प्रभुता सौख्यनाकुलं विमति ॥१४॥
शाहदरा दिल्ली-३२

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