Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 161
________________ पाश्र्वनानचरित में राजनीति और शासन-व्यवस्था पार्वनाषचरित में मो गुप्तचर जब कमठ के दुराचार राजा अपने पोरस पुत्र को ही युवराज पद अभिषिक्त की शिकायत करता है, तो मन्त्री मरुभूति उस शिकायत करते थे। युवराज ही राज्य का उत्तराधिकारी होता की सत्यता की जांच के लिए निवेदन करता हुमा कहता था। जब राजा वचवीर्य ने अपने पुत्र वचनाभ को राजहै-"हे देव ! यद्यपि तुम्हारे प्रचुचर असह्य दुःखदायक कीय गुणों से मण्डित देखा, तो मन्त्रियों की सलाहपूर्वक दण्ड के भय से मिथ्या बातें नहीं कहते हैं, किन्तु घटना का उत्सव के साथ उसे युवराज पद पर अभिषिक्तकर दिया। दृढ़ निश्चय प्राराध-विशेषज्ञों द्वारा कराया जाये। जब राजा वज्रवीर्य ने बहुत दिनों से धारण किये हुए इन्द्रियां भी निकटस्थ वस्तु के सम्बन्ध में धोखा दे देती है पृथिवी के भार को कुछ कम कर सुख से समय बिताया।" तो विषमाभिसन्धि मृत्यो की बात का क्या भरोसा ?" ७. सामन्त राजा मंत्री राजा का सद असद् देवो वाला तीसरे नेत्र के सामन्त राजा वे शासक कहलाते थे, जिन पर चढ़ाई समान माना जाता था।२ मन्त्री की मत्रणा से शत्रों करके राजा ने विजय प्राप्त कर ली हो, किन्तु राजा तक की सम्पत्तिया राजा को प्राप्त हो जाती थी।" की अधीनता स्वीकार कर लेने पर उन्हे पुन. राजपद पर पार्श्वनाथचरित से पता चलता है कि मन्त्री प्राय: ब्राह्मण प्रतिष्ठापित कर दिया गया हो। ये राजा एक निश्चित ही होते थे। धनराशि कर के रूप में अपने विजेता राजा को प्रदान ५. मन्त्री का उत्तराधिकार करते थे। शुक्रनीति में कहा गया है कि जिसमें प्रतिवर्ष मन्त्री का उत्तराधिकार भी प्राय: वंशानुक्रमिक होता प्रजा को पीड़ित किये बिना एक लाख रजतमुद्रामो से था। यदि कभी बड़े पुत्र में कोई प्रयोग्यता हो अथवा लेकर तीन लाख तक वार्षिक कर मिलता है, उसे सामन्त छोटा पुत्र अधिक गुणबान हो तो राजा छोटे पुत्र को भी राजा कहते है ।" पार्श्वनाथचरित में सामन्त राजामों का मन्त्री बना लेता था । कमठ के ज्येष्ठ होने पर मी राजा निर्देश मिलता है। वज्रवीर को जीतने के बाद राजा अरविन्द ने अपना मन्त्री अधिक गुणवान मरुभति को ही अरविन्द ने कर लगाकर उसे पुन: पमपुर का राजा बना बनाया।" यदि किमी प्राकस्मिक तथा प्रावश्यक कार्यवश दिया। अतएव वज्रवीर भी सामन्त राजा की श्रेणी में मन्त्री को राजा के साथ कहीं बाहर जाना पड़े तो राज्य- पा गया।" भार किसी मन्त्री परिवार के सदस्य को भी सौंपा जा ५. अधिकारी एवं सेवक सकता था। शत्रु राजा वनवीर पर युद्ध के लिए प्रस्थान राजा को उहायता के लिए अनेक अधिकारी एवं करते समय मन्त्री मरुभूति को साथ ले जाने में राजा सेवक होते थे। राजा कहीं जाता था तो वरिष्ठ अधिअरविन्द ने राज्यभार मन्त्री के अग्रज कमठ को सौंप कारी एवं सेवक उसके साथ जाते थे। मन्त्री पोर युवदिया।५ राज राआ की सर्वाधिक सहायता करते थे। यही कारण ६. युवराज पोर युवराज्याभिषेक है कि युवराज पोर मन्त्री को राजा का क्रमशः दक्षिण युवराज शब्द भावी राजा के लिए प्रयुक्त होता था। और वाम अङ्ग के दोनों बाहु, नेत्र तथा कर्ण माना राजतन्त्र में युवराज का महत्वपूर्ण स्थान होता था। गया है।" - - ११. पार्श्वनाथचरित, २.५५.५७ १२, पार्श्वनाथचरित, १.६७ १३. वही, १.६६ १४. वही, १.६४ १५. वही, १.१०० श्थ. यही, ५.२४ १७. लक्षकमितो भागो राजतो यस्य जायते । वत्सरे वत्सरे नित्यं प्रजानां स्वविपीडनः ।। सामन्तः स नृपः प्रोक्तो पावल्लभातावधिः । शुक्रनाति, १.१८३.८४ १८. पाश्वनाथचरित, १.१०२ १९. वही, १.११३ २०. वही १.७३ २१. शुक्रनीति, २.१२

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