Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 173
________________ जैन वसपोर परम्परा के विचार जानने को मिले। उनमें तर्कसंगत और तथ्य. जैन-बज के प्रसंग में प्रतिष्ठातिलक में जो स्पष्ट पूर्ण दृष्टि नहीं मिली। अपितु यह तो अवश्य प्रतीन उल्लेख हैं उपके अनुसार जैन ध्वज सर्वथा श्वेत ही सिद्ध हया कि प्रस्तुत किए गए प्रमाणों के माथ मन्याय किया होता है और उस पर छत्र, पद्मवाहन, पूर्णकलश, स्वस्तिक गया है और उन्हें बलात् प्राचीन जैन ध्वज के साथ जोडने प्रादि चिह्न होते हैं । तथाहि - का प्रयत्न किया गया है। यतः-वे प्रमाण देवी-देवतामा 'सुधौतसूश्लिष्टश्वेतनतमवासः परिकल्पितस्यास्यके ध्वज-प्रसंगों से संबन्धित है । ध्वज के पवरंगा होने में पहली बात जो कही जा रही वह है "विजया पंच. 'ध्वजमस्तकास्याधः प्रथमे पदे छत्रत्रयं, द्वितीयपदे पपवर्णाभा पंचवर्णमिदं - ध्वजम् ।" बाहन, तृतीये पूर्ण कलशं तत्वालयो स्वस्तिक यथायोभ पर-उक्त उद्धरण जैन-ध्वज से सबन्धित नहीं अपितु शिल्पिना विलिख्य तदेतन्महा ध्वजं सद्यागमण्डलस्याग्रतो विजयादेवी के निजी वन से संबन्धित है। यतः- वेदिकातले पूर्वस्यां दिशि समवस्थाप्य दिकपालकेतूम्... नीचे दिए गए पूर्ण प्रसंग से विविध-देवियों और उनकी विवकम्यकाकेतन · तदध्वजपाचपोरवस्थाप्य सम्महाबध्वजामों के स्वरूपों का यथावत् निश्चय हो जाता है। जापतः.....।' तथाहि -प्रतिष्ठातिलक, पृ० १८५-१६ 'पीतप्रभातयादेवी पीतवर्णमिदंघ्बजम् ।' उक्त प्रसंग से स्पष्ट है कि ध्वज धुले-सुश्लिष्ट, श्वेत 'पद्माख्यदेवी पद्माभा पद्मवर्णमिदं ध्वजम् ।' नूतन वस्त्र से बना होता है पोर छत्र, कलश, स्वस्तिक 'सा मेघमालिनीकृष्णा कृष्णवर्णमिदंध्वजम ।' प्रादि चिह्नो से चिह्नित होता है। यही मुख्य ध्वज, 'हरिन्मनोहरादेवी हरिद्वर्णमिदं ध्वजम् ।' महाध्वज नाम से भी कहा गया है। प्रतिष्ठा प्रादि के 'श्वेतामा चन्द्रमालेयं श्वेतवर्णमिदध्वजम् ।' अवसरों पर इस महाध्वज को प्रमुखरूप में स्थापित किया 'नीलाभासुप्रभादेवी नीलवर्णमिद ध्वजम् ।' जाता है और अन्य रंग-विरग (देवी-देवतामों के) ध्वज'श्यामप्रभा जयादेवी श्यामवर्णमिदं ध्वजम् ।' जो क्षुद्र-ध्वज के नाम से सम्बोधित किये जाते हैं। उन्हे 'विजया पंजवाभा पंचवर्णमिद ध्वजम् ।' इस महाध्वज के चारों भोर (उनके लिए ऊपर निर्दिष्ट दिशाभों के क्रम मे) स्थापित किया जाता है। इन क्षुद्र ध्वजापों को झड़ियों के नाम से भी जाना जा सकता है। उक्त प्रसंग से देवियों के पृथक-पृथक् रंगों और तदनु- यतः इनका परिमाण मुख्य ध्वज से पर्याप्त छोटा होता सार उनके ध्वज-रंगों की पुष्टि हो जाती है। जैसे- है। महाध्वज की लम्बाई ५ से १० बालिस्त और चौड़ाई १६ से २४ अंगुल तक की कही गई है। देवी का नाम देवी का वर्ण देवी के ध्वज प्वज को दिशा का वर्ण ___पंचदशाद्यन्तवितस्तिरूपविघदेन्यितमदय॑स्य, १ पीतप्रभा पीत पीत एकोनविंशत्यं गुलादिचतुर्विशत्यंगुलांतपड़िवधव्यासरन्यतम २ पपा पद्म पद्य आग्नेय व्यासस्य ।-(वही)। ३ मेषमालिनी कृष्ण कृष्ण भवाची प्राचार्य उमास्वामि कृत जैनियो के प्रामाणिक मारम४ मनोहरा हरित् हरित् नैऋत्य सूत्र तत्त्वार्थसूत्र से कौन परिचित नहीं है ? यह सूत्र ५ चन्द्रमाला श्वेत श्वेत प्रतीची परममान्य है और सभी विषयों में सष्ट निर्णायक है। ६ सुप्रभा नील नील वायव्य उससे ध्वज के श्वेत होने के प्रमाण --उसकी प्रामाणिक ७ जया श्याम श्याम उदीची टीकानों से उपलब्ध होते है। तथाहि-'अव ग्रहेणग्रहीतो. ८ विजया पंचवर्ण पंचवर्ण अधः, ऊर्ध्व, ईशान योऽर्थस्तस्य विशेषपरिज्ञानाकांक्षणमीहा कथ्यते । थया

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