Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 180
________________ १०२, वर्व ३०, कि०३.४ अनेकान्त प्रकार की प्रवस्थानों को प्राप्त हो रहा है। जैसे नाटक कर एक गोली बनाई गई है। वह गोली क्या है ? गोली में काम करने वाला अपने एकपने को कायम रखते हुए का अलग अस्तित्व नहीं, उन भनेक दवाइयों के समुदाय अनेक स्वांगों को प्राप्त होता रहता है। स्वांग बदलते का नाम ही गोली है। ऐसे ही मात्मा अनेक गुणों का हैं और वह वहीं एकरूप से, सब स्वागों में उपलब्ध समुदाय रूप है पोर हर एक गुण प्रपना कोई न कोई होता रहता है। वहां दो रूपता का ज्ञान होता है-एक तो गुणत्व कायम रखते हुए किसी अवस्था को प्राप्त हो यह वही है जो पहले स्वाग में था और दूसरा, यह स्वांग रहा है। वे अवस्थाएं उस गुण को अपने गुणपने को दूसरा है और पहला स्वांग दूसरा था। सर्व प्रकार के बिना छोड़े हुए है : वे उस गुण से अन्य गुणरूप नहीं हो स्वांगों में जो वही-वही का ज्ञान हो रहा है । वह वस्तु के सकतीं । कोई गुण कम विकसित है, कोई पूरा विकसित सामान्य धर्म का अथवा वस्तु के वस्तुत्व का अथवा वस्तु है। जैसे कल्पना करें कि श्राम नाम की वस्तु है, उसमें के द्रव्यत्व का बोधक है, और यह वह नहीं, यह अन्य है, स्पर्श-रस-गंध-वर्ण गुण है। वह पाम उन स्पर्श-रस-गंधपहने अन्य था । यह अन्य-अन्यपने का जो ज्ञान हो रहा है वर्ण गुणों का पिण्ड है । इनको छोड़कर पाम कुछ अन्य वह वस्तु के पर्याय-धर्मत्व का प्रथवा विशेष स्वरूप का नही है। अब ग्राम का स्पर्श गुण कठोर अवस्था को प्राप्त बोधक है। यह दो रूपपने का ज्ञान होना ही साबित कर रहा हो रहा है, फिर बदली होने-होते वही स्पर्श गुण, अपने स्पर्शहै कि उसमे दो प्रकार का धर्म है : एक द्रव्यरूप और एक पने को कायम रखते हुए, स्पशंपने के अन्तर्गत, कठोर से पर्याय रूप । पर्याय माने जो समय-समय पर परिवर्तनशील नम्र अवस्था को बदल रहा है। रम गुण भी अपनी हो- चाहे अन्य रूप हो, चाहे उसी रूप हो। जैसे अवस्था में विद्यमान रहते हुए खट्टी से मीठी अवस्था को बिजली का बल्ब जल रहा है, हमें मालूम होता है कि वह प्राप्त हो रहा है। गंध गुण भी इसी प्रकार से एक-एक एक रूप से जल रहा है परन्तु हर समय के बिजली के अवस्था से अन्य अवस्था रूप परिवर्तित हो रहा है। वर्ण यूनिट भिन्न-भिन्न है। पहले समय के यूनिट दूसरे से, गुण भी हरेपने से पीलेपन को प्राप्त हो रहा है । यह हरे दूसरे समय के तीसरे समय से अन्य है। इसलिए भिन्नता से पीलापन एक रोज मे नही हुमा, परतु हर समय मे होने पर भी एक रूपला मालम हो रही है। अगर बीच हरापना मी परिवर्तित होता जा रहा है। सूक्ष्म परिवर्तन में ज्यादा और कम प्रकाश हो जाए तो पहले और दूसरे हमे दिखाई गहीं देता, जब बड़ा परिवर्तन हो जाता है तो समय में भिन्नता पकड़ मे प्रा जायेगी। इसी प्रकार, यह वह पकड़ में आने लगता है। परन्तु वह हुमा है क्रमशः मात्मा भी एक वस्तु है और वह भी अपने वस्तुत्व को हर एक समय ही। इस प्रकार, जो ग्राम के गुणों का कायम रखते हुए प्रतेक प्रवस्थानों को प्राप्त हो रही है। प्रवस्थान्तर हो रहा है, उन अवस्थानों को उन-उन गुणों अगर उन अवस्थाओं मे उस एक को खोजें तो वह एक- की पर्याय कहते है। पर गुण कोई न कोई अवस्था रूप से सब अवस्थानों में मिल रहा है और अवस्थामो लिए हुए ही मिलेगा और किसी वस्तु के किसी गुण का को देखे तो सब भिन्न-भिन्न मालम हो रही है। अगर कभी प्रभाव नहीं हो सकता। अगर गुणो का प्रभाव भगले समय की अवस्था पहले समय जैसी मालम हो रही होने लगे तो वस्तु का ही प्रभाव हो जाएगा। यह तो है तो या तो मोटे ज्ञान की वजह से है अथवा पहले समय गुणों की अवस्थाम्रो में परिवर्तन हुमा। एक परिवर्तन स समानता लिए हुए है इसलिए मालूम हो रही है। परन्तु होता है पूरी वस्तु मे, जैसे पाम का छोटे माकार से बड़ा है पहले समय से भिन्न । प्राकार का होना, वह पूरे माम मे हमा है। इससे पह हरेक वस्तु मे अनेक गुण होते है । प्रसन मे गुणों के साबित हुया कि हरेक वस्तु प्रनत गुणों का पिण्ड है और पिण्ड का नाम ही वस्तु है। ऐसा न समझना कि वस्तु हरेक गुण, हर समय किसी न किसी भवस्था को प्राप्त हो कोई थैले के समान है और गुण उस थैले मे भरे हुए है, रहा है मोर उन अवस्थामों और सारे गुणों के पिण्ड का परन्तु ऐसा समझना जैसे अनेक दवाइयों को कूट-पीस नाम वस्तु है और वह भी एक अवस्था से अन्य अवस्था को

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