Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 185
________________ नोहर जैन देवालय की घादिनाथ प्रतिमा जिसपर शिखर-थि बनी है। मुख मण्डल शान्त है तथा नेत्र ध्यान-मुद्रा मे नाविकास पर केन्द्रित है लम्बे-लम्बे कान जिनके साथ लटकती हुई धनके दोनों कम्पों पर था टिकी हैं । कन्धे मजबूत हैं तथा बाहें लम्बी । वक्ष पर ἐξ करती है; जिसके पीछे प्रभा मण्डल अस्पष्ट है परन्तु सिर पर छत्र त्रय बहुत ही स्पष्ट है । इस प्रकार हम देखते हैं कि यह प्रतिमा प्रतिष्ठासारोद्धार (१, ६२) के निम्नांकित विवरण से मेल खाती हुई सी प्रतीत होती है श्रीवत्सक शोभायमान हो रहा है जिनके बाएँ जानु तथा स्कन्ध पर धोती की सिलवट सी दिखाई दे रही है जो प्रतिमा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्ध का संकेत प्राजानुलम्बबाहुः श्रीवात्सांगः प्रशान्तमूतिश्य । ७. तुलना करें शान्तप्रसन्नमध्यस्थनासावस्यविकारक | संपूर्ण भावारूढानुविद्वांगं लक्षणान्वितम् ॥ सिहासन के दोनों छोरों पर मिह प्रकित किए गए है दिग्वासस्तरुणो रूपयदिच कार्योऽसंतो देवः ॥ इत्संहिता ५७, ४५

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