Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 126
________________ ४४, वर्ष ३०, कि० ३-४ अनेकान्त लक्ष्मण ने किष्किन्धा के राज्य को प्राप्त करने में सुग्रीव जैन ग्रन्थों में रामायण का निरूपण जहाँ अत्यन्त की सहायता की। बाद में सुग्रीव की सेना के साथ ही लोकप्रिय विषय रहा है, वहीं मूर्त अंकनों में रामकथा या राम-लक्ष्मण ने लंका की ओर प्रस्थान किया। रावण के राम के स्वतंत्र चित्रणों के उदाहण अत्यन्त सीमित हैं। अनुज विभीषण ने रावण को अपहृत सीता ससम्मान राम किसी श्वेताम्बर स्थल से राम के मूर्त अंकन के उदाहरण को लौटा देने का परामर्श दिया, जिसे रावण ने अस्वीकार नहीं प्राप्त होते है। राम के मूर्त चित्रणों के उदाहरण कर दिया । परिणामस्वरूप सीता की मुक्ति के लिए राम केवल खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर से ही प्राप्त होते को रावण मे युद्ध करना पड़ा। राम और रावण की हैं। चन्देल शासकों के काल में निर्मित ६५४ ई० का यह सेनाओं के मध्य हुए भयंकर युद्ध में रावण की मृत्यु हुई। पार्श्वनाथ मन्दिर दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है। मन्दिर अन्ततः राम ने सीता को प्राप्त किया और लंका के सिंहा- के मण्डप की उत्तरी भित्ति पर राम-सीता की मूर्ति सन पर विभीषण को प्रतिष्ठित किया। उत्कीर्ण है। त्रिमंग मुद्रा में अवस्थित राम-सीता के पाव मे कपिमुख हनुमान आमूर्तित है। चतुर्भुज राम की दो लंकाविजय के पश्चात् राम और लक्ष्मण सीता के भुजाओ में लंबा शर है। ऊर्ध्व वाम भुजा से राम वाम साथ अयोध्या लौट आए । जैन परम्परा के अनुसार, राम पार्श्व में अवस्थित सीता का आलिगन कर रहे हैं, जिसमें की ८००० रानियाँ थी जिनमें सीता और तीन अन्य उनकी उंगलियां सीता का स्तन स्पर्श करती हई प्रदर्शित प्रमुख थी। लक्ष्मण की १६००० रानियाँ थी, जिनमे हैं। राम की निचली दाहिनी भुजा हनुमान के मस्तक पर पृथ्वीसुन्दरी प्रमुख थी। स्मरणीय है कि हिन्दू परम्परा मे आशीर्वाद देने की मुद्रा (पालित मुद्रा) मे है। किरीटमुकुट, राम और लक्ष्मण दोनों को एकपत्नीक बताया गया है। कर्णफूल, चेन्नवीर, मेखला, वनमाला और धोती आदि से जैन परम्परा के अनुसार, लक्ष्मण की मृत्यु के बाद राम शोभित राम की पीठ पर तूणीर चित्रित है। द्विभुज सीता साधु हो गए। सतत साधना के पश्चात् राम को केवल की वाम भुजा में नीलोत्पल प्रदर्शित है, जब कि दक्षिण ज्ञान और निर्वाण की प्राप्ति हुई। जैन तीर्थ करो (या भुजा आलिगन की मुद्रा मे राम के कंधों पर स्थित है। जिनों) द्वारा उद्बोधित मार्ग का अनुसरण न करने के सीता स्तनहार, अल कृत शिरोभूषा, धोती आदि से कारण ही मृत्यु के बाद लक्ष्मण को नरक मे जाना पड़ा। सुशोभित है। राम के दक्षिण पाश्र्व की हनुमान आकृति शास्त्रविरुद्ध कार्यों को करने के कारण रावण भी नरक में कौपीन एवं अन्य आभूषणो से सज्जित है । हनुमान की उत्पन्न हुआ। जैन आयिका का जीवन व्यतीत कर सीता एक भुजा राम की उंगलियों का स्पर्श करने की मुद्रा मे ने मोक्ष प्राप्त किया। ऊपर उठी है। उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि कुछ बातों के अति उपर्युक्त चित्रण के अतिरिक्त पार्श्वनाथ मन्दिर के रिक्त अन्य दृष्टियों से जैन परम्परा का रामकथा हिन्दू दक्षिणी शिखर के समीप रामकथा का एक दृश्य भी परम्पग पर ही आधृत है। राम आर लक्ष्मण का अनक चित्रित है । दृश्य में रावण द्वारा अपहृत सीता को अशोकपत्नियों, लक्ष्मण द्वारा रावण के वध, राम द्वारा जिन-मार्ग वाटिका में एक वृक्ष के नीचे आसीन दरशाया गया है। का अनुसरण कर मोक्ष प्राप्त करने जैसे उल्लेख स्पष्टत कपिमुख हनुमान क्लांतमुखी सीता को राम का सन्देश । हिन्दू परम्परा से भिन्न है। जैन परम्परा मे रावण को ओर मुद्रिका देने की मुद्रा में प्रदर्शित हैं। हनुमान दशमुखी राक्षम के स्थान पर विद्याधरवंशी शासक बताया खड्गधारी राक्षस आकृतियों से वेष्ठित है। गया है जो मनुष्य था। ग्रीवा के हार की नौ मणियो में पड़ने वाले प्रतिबिवों के कारण ही उसे दशानन बताया गया है।

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