Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 6
________________ भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य ० ए एन. उपाध्ये एम. ए., डी. लिट् [गत किरण ६ से आगे] ४. जैन साहित्य : हैं। अन्य तीर्थकरों की जीवनियाँ जो कल्पसूत्र में दो (भ) प्रागम-स्तर का है, वास्तव में जीवनियां वे है ही नहीं। वे तो पाठकों को एक नामावली मात्र प्रस्तुत कर देती है जिनसे उसकी अब हम जैन साहित्य का सर्वेक्षण करें। जैनों वांचना देने वाला वाचना देते समय विस्तृत वर्णन दे सके। के अर्धगधी प्रागम ग्रन्थों को यद्यपि वर्तमान रूप दूसरे शास्त्र या ग्रथों से हमे नेमिनाथ, पार्श्वनाथ मादि की बहुत बाद में ही प्राप्त हुआ है फिर भी, उनमे ऐसा जीवन झाकियां भी मिल जाती हैं । प्राचीन अश निःसन्देह ही है कि जिसको जैनों के आदि मे जो सामान्य उमाए या रूपक होगे, वे ही अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीर के युग के सन्निकट कालान्तर मे वर्णात्मक कथायो का रूप पा गये है ताकि का समय ही दिया जा सकता है। इन आगमों में वर्ण उपमा या रूपक की सभी दृष्टियाँ उसमे प्रस्फुटित हो जाएं नात्मक अंश भी पर्याप्त है जो कि प्रौपदेशिक और उन्ना और पुण्यात्मानों के लिए उनमे से शिक्षासार भी निकाला यक दृष्टि का कहा जा सकता है। इस प्रश मे धर्मवीरों जा सके। नायाधम्मकहानों में हमे कतिपय अच्छे उदाजैसे कि तीर्थंकरों और उनके त्यागी अनुयायियो की हरण मिलते है । कच्छप अपने हाथ-पैरो मे पूर्ण सुरक्षित जिनमें शलाका पूरुष भी है की जीवनियां है। इनमें अर्थ होता है ऐसा माना जाता है । तूंबा मिट्टी से सना हुआ हो प्रकाशक उपमाये है. दृष्टान्त और सवाद है। प्रौपदेशिक तभी डूबता है और नन्दीवृक्ष के फल हानिकर होते हैं। भोर अनुकरणीय कथाएँ है और उन नर एवम् नारियों इन भावों का कोई न कोई उपदेश देने में उपयोग किया की प्रादर्श कथाएं है कि जो भिक्ष और भिक्षुणी हो गए थे गया है। इनके दृष्टान्त से समझाया जाता है कि प्रसावपौर जिनने परभव में अच्छा जीवन पाया था। धान भिक्षु कैसे नष्ट हो जाता है ? कर्मों के बोझ से भारी दो याने प्राचारांग और कल्पसूत्र में भिक्षु जीवन में हुए जीव कैसे नरक मे जाते हैं ? और जो जीवन के सहे परिपहों के विशद वर्णन सहित महावीर की जीवनी सुखोपभोगो मे प्रासक्त रहते है अन्त में वे दुख क्यों उठाते दी हुई है। भगवती सूत्र के भिन्न-भिन्न सवादों में महावीर है ? बिल्कुल इसी प्रकार रूपकाख्यानों को या तो वर्णात्मक के व्यक्तित्व की, विशेषकर विवादों में, उनकी चतुराई कथा के रूप में या सजीव सवाद-विवाद के रूप मे पल्लवित पौर अपने गिष्यो की शंकायों व प्रश्नों के उत्तर में की किया जाता है और उसका प्रत्येक विवरण कुछ न कुछ व्याख्यानों मे उनके व्यक्तित्व की कुछ झांकियां मिलती प्रोपदेशिक या शिक्षादायी होता है सूयगडांग में दिया १०. इन ग्रन्थो के सस्करण आदि विवरण के लिए पाठक कमलसर का रूपक बड़ा जटिल है। कमलों से भरे एक को विन्टरनिट्ज की (ए हिस्ट्री प्राफ इडियन लिटरेचर) सरोवर के केन्द्र में एक बहुत बड़ा कमल खड़ा हुपा है। भाग २ (कलकत्ता संस्करण १६३३) और शुविग चारो दिशाओं से चार व्यक्ति उस सरोवर पर पाते है की डी. ए. लेहे डे जैनास (बलिन और लेपजिग एवम उस केन्द्रस्थ बड़े कमल को तोड़ लेने का प्रयल १९३५) देखने की साधना है। स्थानाभाव के कारण करते है। परन्तु कोई भी उसे तोड़ लेने में समर्थ नहीं यहाँ केवल मत्यन्त प्रावश्यक ग्रन्थ निर्देश ही दिये होता है। फिर एक भिक्ष तट पर खड़ा-खड़ा ही कुछ शब्द गये है। उच्चारण करता है और उसे तोड लेने में सफल हो जाता

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