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सरल योगाभ्यास
[ लेखक – श्री हेमचन्द्रजी मोदी ]
'नेकान्त' के प्रथम वर्ष की संयुक्त किरण नं० ८०६
१० में मैंने ' योगमार्ग' शीर्षक एक लेख लिखा था और उसमें योगविद्या के महत्व और उसके इतिहास पर कुछ प्रकाश डाला था । अब मैं 'अनेकान्त' के पाठकों को योगाभ्यासके कुछ ऐसे सरल उपाय बतलाना चाहता हूँ जिनसे इस विषय में रुचि रखनेवाले सजन ठीक मार्गका अनुसरण करते हुए योगाभ्यास में अच्छी प्रगति कर सकें और फलतः शारीरिक तथा मानसिक शक्तियोंका विकासकर अपने इटकी सिद्धि करने में समर्थ हो सकें । लेख में इस बातका विशेष ध्यान रखा गया है कि हरेक श्रेणी के लोग गहस्थ, ब्रह्मचारी, मुनि यदि सब ही इससे लाभ उठा सकें। गृहस्थोंके लिये ऐसे अभ्यास दिये जायेंगे जिन्हें वे बिना अड़चन के और बिना कोई खास समय दिये कर सकें; तथा जिनके पास समय है उनके लिये ऐसे अभ्यास दिये गये हैं जिनसे कमसे कम समय में अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सके । साथ ही, मौके मौकेपर मैंने अपने अल्प समय के अनुभवोंका हाल भी लिख दिया है, जिनसे कि मुमुक्षुत्रोंको सहायता मिल सके । वास्तव में योग ही एक ऐसी विधा है जिसकी सबको समानरूपसे आवश्यकता है । भारतवर्ष के सभी विज्ञानों-सभी शास्त्रों का अन्तिम लक्ष्य और यहाँ तक कि जीवनका भी अंतिम लक्ष्य मोक्ष है, और योग वह सीढ़ी है जिससे होकर ही हरेकको चाहे वह मुनि हो या गृहस्थी, वैया
करण हो या नैयायिक और चाहे वैद्य हो अथवा अन्य और कोई - गुज़रना पड़ता है । योगका ही मोक्षसे सीधा सम्बन्ध है । श्री हरिभद्रसूरि कहते हैं:
विद्वत्तायाः फलं नान्यत्सद्योगाभ्यासतः परम् । तथा च शास्त्रसंसार उक्तो विमलबुद्धिभिः ॥ ५०७ — योगबिन्दु अर्थात् – योगाभ्यास से बढ़कर विद्वत्ताका और कोई फल नहीं है; इसके बिना संसारकी अन्य वस्तुनोंके समान शास्त्र भी मोहके कारण हैं, ऐसा विमल बुद्धियोंने कहा है ।
सम्यग्ज्ञानकी विरोधिनी तीन वासनायें हैं और ये वासनायें बिना योगाभ्यास के नष्ट नहीं होतीं । जैसा कि कहा है
लोकवासनया जन्तोः शास्त्रवासनयापि च । देहवासनया ज्ञानं यथा वचैव जायते ॥ ४ । २ जन्मान्तरशताभ्यस्ता मिथ्या संसारवासना ।
चिराभ्यासयोगेन विना न चीयते क्वचित् ॥१६॥ शुक्ल यजुर्वेदान्तर्गतमुक्तिकोपनषिद् अर्थात् - लोकवासनासे, शास्त्रवासनासे और देहवासनासे जीवको ज्ञान नहीं होता । जन्म-जन्मान्तरोंसे अभ्यास की हुई संसारवासना बिना योगके चिरकालीन अभ्यासके क्षीण नहीं होती ।
इस प्राक्कथन के बाद अब योगके प्रथम और सर्व प्रधान अभ्यासकी चर्चा की जाती है ।