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वीर-व
[ लेखक पं० मूलचन्दजी जैन " वत्सल " ]
( १ )
भेरी बज रही है, लोकसमूह इस नवीन उत्पन्न
वह स्वधर्म अनुरक्त, सत्यभक्त और मातृभूमि - हुई परिस्थितिमें अपने अपने योग्य कार्यको हस्त
प्रेमासक्त था । उज्वल अहिंसासे उसका हृदय परिप्त था ।
गत कर लेने के लिए शीघ्रता से एकत्रित हो रहे हैं । जिसका आत्मभाव सदैव जागृत है ऐसे नतुवाके लिए नवीन परिस्थितिको अनुभव करनेमें कुछ भी समय न लगा ।
मातृभूमि संरक्षण के लिए, वीर माताकी आज्ञानुसार प्रतिस्पर्धीका निमंत्रण स्वीकार कर भीषण रण स्थलमें अपने अटल कर्तव्यको पूर्ण करनेवाला स्वधर्मनिरूपित अंतिम उत्कृष्ट क्रियाओंको उल्लास पूर्ण अवस्थामें परिपूर्ण कर स्वर्ग प्राप्त करनेवाला, वह था एक 'वारहव्रत धारी जैन श्रावक ।'
वह घरमें आया और बातकी बातमें अस्त्रशस्त्र सुसज्जित होगया । शरीर पर लोहेका कवच और मुकुट, कमर में तलवार, उसके ऊपर तथा पीछे ढाल, तीरोंसे भरा तरकस और हाथमें धनुष ।
उसका नाम था 'वैराग नाग नतुवा ।' (२)
कल उपवासका दिन था और आज था उसके पारणे का दिन । नतुवा आसन पर पारणा करने को बैठा ही था कि उसी समय भेरी की ध्वनि उसके कानोंमें पड़ी । नगर के शान्तिपूर्ण वातावरण में कुछ असाधारण उपद्रव जगने की उसे आशंका उत्पन्न हुई । भोजन त्याग कर वह उसी समय For और बाहर आया । नगर पर किसी शत्रु सैन्यने आक्रमण किया है, आक्रमणका प्रतिकार करने के लिए स्वदेश और स्वजनोंके रक्षणार्थ राजाने समस्त वीर क्षत्रिय सैनिकों को अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होनेका निमंत्रण दिया है । यह उसने ज्ञात किया ।
योद्धाका साज सजकर, इष्ट देवका स्मरण कर, माता पिता के आशीर्वाद और वीर पत्नीके वीरोत्तेजक शब्दोंसे उत्तेजित नतुवा शत्रु दलका सामना करने के लिए बाहर निकल पड़ा।
(३)
वीरता के कारण सेनामें उसका पद ऊँचा था, वह रथी था । बाहर रथ तैयार था, अधीर हुए उन्मत्त घोड़े चारों पैरोंसे हवामें उड़ने को तैयार हो रहे थे । सारथी कठिनाई से उन्हें स्वाधीन रख रहा था । शासन देवका स्मरणकर वीर नतुवा रथपर सवार हुआ । पृथ्वीको कंपाते हुए घोड़े प्रबल वेगसे उड़ने लगे ।
वह क़िले के बाहर अपनी सेना में सम्मिलित