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वर्ष ३, किरण ५]
दर्शनोंकी पास्तिकता और नास्तिकताका आधार
तरह कुम्हार मिट्टी, घट, दीपक, सकोरा आदि आते हैं जिनका कर्ता बुद्धिमान नहीं होता, अपने मिट्टीके बर्तन, बढ़ई लकड़ीसे कुरमी, मेज, आप बनते बिगड़ते रहते हैं । घास, कीड़ा-मकौड़ा, पलंग किवाड़ आदि और जुलाहा ( बुनकर) जड़ निमित्त के मिल जानेसे उत्पन्न होते हैं और सृतसे धोती, दुपट्टा, चादर, तौलिया, रूमाल आदि विनाश हेतुओंके साहचर्यसे विनिष्ट होते रहते हैं। काड़ा तैयार करता है; यदि मिट्टी उपादान कारण हीरा, मणि, पन्ना, पुखराज आदि नियत स्थानमें तथा अन्य चक्रादि ( घड़े बनानेका चाक ) निमित्त ही पैदा होते हैं । स्वाति की बद यदि सीपमें पड़ कारण मौजूद भी रहे और कुम्हार न हो तो घड़े जाय तो मोती बन जाता है, किसी हाथीके गण्ड
आदिका बनना सर्वथा असम्भव रहता है । उसी स्थलमें भी गजमुक्ता ( एक किस्मका मोती ) का प्रकार यद्यपि जीव और प्रकृति-उपादान-कारणों- सद्भाव माना गया है, सर्पराज-मणियार सर्पके के द्वारा ही चेतन अवेतन विश्वकी रचना हुई है; मस्तक पर मणिकी उत्पत्ति होती है; इसी तरह तो भी इस तमाम अत्यन्त कठिन दुरुह और और भी असंख्य उदाहरण दिये जा सकते हैं, व्यवस्थित जगत-रचनाका करनेवाला कोई बहुत जिनके बनाने में प्रकृतिके सिवाय अन्य किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति जहर है । जो इस रचनाका ईश्वरादि व्यक्तिका जरा भी दखल नहीं है । शाकर्ता है, वह ईश्वर है, ईश्वरसे भिन्न कोई अन्य यद ईश्वरवादी दार्शनिक उपर्युक्त उदाहरणोंमें भी साधारण व्यक्ति इतने महान् कार्यको नहीं कर ईश्वरका दखल बतलाते हुए कहें, कि ये कार्य भी मकता । चकि ईश्वर सर्वशक्तिमान् , सर्वज्ञ और सातिशय परमात्मा द्वारा ही निर्मित होते हैं; सर्वत्र व्यापक है, इसलिये वह एक ही समयमें परन्तु घामादिकी उत्पत्तिको देखते हुए, उसकी अनेक देशदर्ती, एक देशवर्ती अनेक कार्य और बुद्धिमत्ताकी कलई खल जाती है । आबाद मकानों भिन्न समय में भिन्न भिन्न देशमें होनेवाले अनेक की छत, अंगन भित्ति आदि उपयोगी स्थानों पर कार्योको सरलतासे करता रहता है। भी बारिशके दिनोंमें व्यर्थ ही घास पैदा होजाया
ईश्वरवादी दार्शनिकों की तरह निरीश्वरवादी करता है, यह कार्य भी क्या बुद्धिमत्ताका सूचक दार्शनिक भी कार्यकी उत्पत्ति उभय कारणोंसे है ? ( उपादान और निमित्तसे ) मानते हैं । जैन- ईश्वरवादी दार्शनिक ईश्वरको जगत् निर्माता दर्शनने ईश्वरकी जगन्-कतृताका युक्तिपूर्वक खंडन माननेमें यह दलील भी देते हैं कि, अगर जगतका किया है, वह ना यहाँ नहीं लिया जा सकता बनाने वा व्यवस्था करनेवाला महान् बुद्धिमान न यहाँ मोटी दलीलें पेश करूँगा, जिससे जगत्की होता, तो यह विश्व-रचना इतनी व्यवस्थित और प्राकृतिकताका भान हो सके।
सुन्दर न होती । यह उसी सर्वशक्तिमान परमात्मा ___ हमारे ईश्वरवादी भाई कहा करते हैं, कि हर- की लीला है जिसने जगत्को एक सुन्दर ढाँचेमें एक कार्यकी उत्पत्ति बुद्धिमान् सहायकके बिना ढाला है । भाइयो, जरा विश्व-रचनाकी ओर भी नहीं होती; परन्तु संसारमें ऐसे बहुतसे कार्य नजर गौर कीजिये, आया यह व्यवस्थित है या अव्यव