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दर्शनों की आस्तिकता और नास्तिकताका आधार
वर्ष ३, किरया ]
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इन दोनों विरुद्ध मनोवृत्तियोंने आपस में अत्यन्त उग्ररूप धारण कर दार्शनिक जगत्, और साथ ही साधारण जनता को भी दो भागों में विभक्त कर दिया । एक भागको आस्तिक और दूसरे भागको नास्तिक कहते हैं, दोनों एक दूसरे दुश्मन हैं । हमें उस बुनियाद - आधारको ढूंढ़ निकालना है, जिसके बल पर इन विरोधि मनोवृत्तियों का बीज बोया गया, और जिसका परिणाम हमेशा दुखद तथा कटु ही रहा । अपने अगुओं के फुसलाव में आकर साधारण जनता भी इन मनोवृत्तिओं के प्रवाह में बहने से अपने आपको न रोक सकी। इस विरोधने इतना जोर पकड़ा कि आये दिन धर्म के नामपर मानवताका खुले आम गला घोंटा गया, इस भावनाने मानव समाजको टुकड़े टुकड़े में विभक्त कर दिया, जिससे उनकी वा उनके देशकी अपार क्षति हुई। इस युगमें भी कभी कभी ये हत्यारी भावनाएं जाग उठतीं हैं, जिससे राजनैतिक आन्दोलनको भी इसका कटु परिणाम भुगतना ही पड़ता है। इस समय तो हमें ऐसी दशा उत्पन्न कर देना चाहिये, जिससे सभी दार्शनिक वा जनसाधारण एक दूसरे को अपना भाई समझकर देशोद्वार आदि कार्यों में कन्धामं कन्धा जुटाकर आगे बढ़ते जावें । इसके लिये पक्षपात वा अपने कुलधर्मका मोह छोड़कर युक्ति अविरुद्ध दर्शनकी आस्तिकता और नास्तिकता पर हमें विचार कर लेना चाहिये, व्यर्थ दूसरोंको नास्तिक कह कर, उन्हें दुःखित करने और भड़कानेसे क्या लाभ ? इन्हीं दुर्भावनाओंने तो भारतको गारत कर दिया; अब तो
सम्हलें ।
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बहुत कुछ विचार करने वा आस्तिक-नास्तिक कहे जानेवाले दर्शनोंकी विवेचनाओं की जानकारी करनेके बाद, मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ, कि किसी पदार्थ के अस्तित्व के स्वीकार करनेसे - स्तिक, तथा उसी पदार्थके न मानने से दर्शन नास्तिक कहलाये । किसीने ईश्वर, ब्रह्मा, खुदाको जगतका बनानेवाला स्वीकार करने, किसीने वेदप्रमाण किसीने अदृष्ट – पुण्य-पाप, और किसीने परलोकका अस्तित्व माननेवाले दर्शनको आस्तिक घोषित किया । और जिनने इनके मानने से इंकार किया उन्हें नास्तिक घोषित किया गया। ऊपर लिखी आस्तिक नास्तिक मान्यताओंके विषय में यहाँ पर कुछ विवेचन करना आवश्यक है; जिससे विषयका स्पष्टीकरण हो जावे और आस्तिकता तथा नास्तिकता की भी जानकारी सरलतासे हो
जाय ।
ईश्वरवादी दार्शनिक – जिन दर्शनों में ईश्वरको जगत्का कर्ता हर्ता माना गया है - जैन-दर्शन, चौद्धदर्शन और चार्वाक दर्शनको ईश्वर न मानने के कारण नास्तिक घोषित करते आये हैं । यह ठीक है, कि जैनदर्शन ईश्वर नहीं मानता, पर ईश्वरा - स्तित्व सिद्ध होनेसे पहले उसे नास्तिक कहना उचित न होगा, युक्ति के बलपर यदि ईश्वर सिद्ध होजाय तो जैनदर्शनको नास्तिक ही नहीं, और जो कुछ चाहें कहें। हाँ, तो यहाँ पर ईश्वर के विषय में विवेचना की जाती है । कतिपय ईश्वरवादी दार्शनिकों का अभिमत है कि इस युग से बहुत पहले इस दुनियाँका कोई पता न था, केवल ईश्वर ही मौजूद था। एक समय ईश्वर को - यद्यपि वह परि पूर्ण था - - एकसे अनेक होने वा सृष्टि रचना करने