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अनेकान्त
[फाल्गुन वीर-निर्वाण सं० २४६६
हो । परोपकारपर व्याख्यान देनेकी उसे आवश्यकता अलग हैं । वे उसके भत-कालीन अनुभवके परिणाम न रहे, क्योंकि उसकी शक्ल ही हज़ार व्याख्यानोंका हैं । ये विशेषताएँ उसके देश और उसकी आवश्यकअसर रखती हो। लालचके विरुद्ध उसे उपदेश देना न ताओं के अनुसार होती हैं और उसकी क़ौमी हैसियत
सिद्ध है कि एक कविका एक शिष्य नित्य उसे को प्रकट करता हैं । इस तरह हर क्रोम, हिन्दु मुसलदिक करता कि आपने यह शुद्धि किस किताबके श्राधार मान, अंग्रेज़ फ्रांसीसी अलग पहचानी जाती है। उस पर की है, वह शुद्धि किस नियमके अनुसार है। एक के जीवनका प्रत्येक अंग यह प्रकट करता है कि उसके दिन गुरुजी झल्ला गये और कहा, अरे हम कविता विशेष गुण है और विशेष कर्तव्य और विशेष शक्तियाँ कहते-कहते स्वयं पुस्तक बन गये हैं, तू यह क्या पछता हैं । अतः जातीय विशेषताओंका बनाये रखना आवश्रहता है। इसी तरह वे ही मनुष्य जातिको पुनः यक है। उदाहरणार्थ पोशाक हा को लीजिए । यों तो उन्नति के मार्गपर ले जा सकते हैं, जिनसे अगर पूछा कपड़े पहननेका बड़ा अभिप्राय गरमी-सरदीसे बचना जाय कि यह बात श्राप किस आदर्शकी दृष्टिसे करते हैं, और लाज-शरम को बनाये रखना है। किन्तु जब कोई परोपकार किस सिद्धान्त पे करना आवश्यक है, तो वे जाति एक विशेष पोशाक ग्रहण कर लेती है, तो एक कह सकें कि भाई हम स्वयं श्रादर्श और सिद्धान्त हैं। अभिप्राय भी हो जाता है । वह पोशाक उस जातिकी हमारा जीवन ही हमारे अनुकरणका प्रमाण है। अधिक एकताका चिन्ह हो जाती है, और उसे दूसरोंसे अलग क्या कहें। केवल पुस्तक अवसरपर काम न आवेगी। करती है। हर जातिके लिये उसकी प्रथाएँ और उसके मंत्र समयपर धोखा देगा। प्रार्थना क्या खबर है सनी समाजका ढाँचा सीपीकी तरह है, जिसमें उसके सदजाय या न सुनी जाप, तावीज़ कठिनाईमें टूटकर गिर गुणों और विचारोंका मोती छिपा रहता है। जब पड़ेगा । श्लोक और ऋचाएँ हृदयको ढाढ़स न देंगी। मोता सीपीकी शरणसे निकला तो गैराक हाथ बिक ये सब उसी समय काम यावेगी जब किसी महापुरुष गया । या यों कहो कि जातिके रिवाजोंका चौखटा का चित्र आँखों में फिरता हो, जिसने उन परीक्षाओंका उसके हृदय और दिमाग़के दर्पणको रौनक देता है तामुकाबिला किया हो जिनका हमें सामना करना है। कि वह संसारके इतिहासकी प्रदर्शनी में दीवार पर उनकी सहायता ही हमारी मुक्तिका कारण होगी। अच्छी जगह रखे जाने के योग्य हो । जाति यदि सिपाही ___अतएव सम्मिलित महापुरुष-पजाको ही अँगरेज़ी है, तो उसकी संस्थाएँ ( अर्थात् स्थायी जातीय विशेष लेखक कार्लाइल सारी उन्नतिका मूल मानता है। ताएँ, जैसे भाषा त्योहार श्रादि) और उसके संस्कार उसकी सम्मतिमें संसारका इतिहास केवल महान लोहे के कवच हैं, जो उसे दुश्मनों के तीरोंसे बचाते हैं । पुरुषोंकी करामातका प्रत्यक्ष रूप है।
यदि जाति हीरा है तो संस्थाएं अँगुठी हैं, जिसमें वह __जातीय इतिहाससे अपने रिवाजों, प्रथाओं और अपनी चमक-दमक दुनियाँके बाज़ारके जौहरियों को जातीय संस्कारोंकी प्रतिष्ठा होती है।
दिखलाता है। प्रत्येक जातिका अस्तित्व पाचरणके अतिरिक्त उन जातीय इतिहाससे हमको पता लगता है कि रिवाजोंपर निर्भर है जिन्हें वह मानती है। ये रिवाज हमारे रिवाजों और संस्थाओंकी क्या वास्तविकता है, भी पाचरणको बनाये रखनेके अभिप्रायसे चलाये जाते किस अभिप्रायसे उन्हें स्थापित किया गया था, उनमें हैं और बहुधा प्राचीन पुरुषोंकी स्मृतिको बनाये रखने क्या खूबियाँ हैं, उनमें जातिकी एकता और आचरण का कारण होते हैं । प्रत्येक जातिकी अलग चाल-ढाल को किस प्रकार सहायता मिलती है। जिन रिवाजोंके होती है। प्रादमी पादमी में अन्तर है। कोई हीरा है लाभोंसे हम अनभिज्ञ हैं उनके लिए हमारे दिल में कोई पत्थर है। हर जातिकी भाषा, रहनेका तर्ज़, इज्जत नहीं हो सकती । उनको अवश्य ही हम बेहूदा त्योहार, मेले तमाशे, शादी और ग़मीके दस्तूर अलग- और व्यर्थ समझने लगेंगे । उनसे घृणा करने लगेंगे।