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[ले०-श्रीमान् बी० सूरजभानजी वकील ]
में तुम्हारी जीवात्माके शान्ति स्वरूप और ज्ञान गुणमें नार भगवान का जन्म विदेह देशकी प्रसिद्ध राज- फ़रक आरहा है, विषय कषायोंके उबाल उठते हैं और
धानी वैशालीके निकट कुण्डग्राममें हुआ था, यह जीव इन्द्रियोंका गुलाम होकर संसारमें चक्कर जिसको कुंडलग्राम या कुंडलपुर भी कहते हैं । आपके लगाता फिर रहा है। अगर वह हिम्मत करे तो इस पिता राजा सिद्धार्थ कुण्डग्रामके राजा थे और आपकी गुलामीसे निकल कर आज़ाद हो सकता है और अपना माता वैशालीके महाराजा चेटककी बेटी प्रियकारिणी ज्ञानानन्द स्वभाव प्राप्त कर सकता है। परन्तु विषय थी, जो त्रिशलाके नामसे भी प्रसिद्ध थी। राजा चेटक कषायोंकी यह गुलामी उनकी ताबेदारी करने और उन की दूसरी लड़की चेलना मगध देश के प्रसिद्ध महाराजा के अनुसार चलनेसे दूर नहीं हो सकती, किन्तु अधिक श्रेणिकसे ब्याही गई थी। वीर भगवान ३० बरसकी अधिक ही बढ़ती है । विषय-कषायोंसे कर्मबंधन और
आयु तक अपने पिताके घर ब्रह्मचर्य अवस्थामें रहे, कर्मोदयसे विषय-कपाथ उत्पन्न होते रहते हैं । वह ही फिर संसारके सारे मोहजालसे नाता तोड़, सन्यास ले, चक्कर चल रहा है और जीव इससे छूटने नहीं पाता, नम अवस्था धारण कर परम वैरागी होगये और अात्म विषय कपायोंके नशेमे उत्पन्न हुअा भटकता फिर रहा ध्यानमें लीन होकर अपनी आत्माकी शुद्धि में लग गये। है । जिस तरह रामचन्द्र जी सीताके गुम होने पर वक्षों बारह वर्ष तक वे पूरी तरह इसी साधनामें लगे रहकर से भी सीताका पता पूछने लग गये थे अथवा जिस घातिया कर्मोका नाशकर केवल ज्ञानी हो गये। तब तरह थालीके खोये जानेपर उसकी तलाशमें कभी कभी उन्होंने दूसरोंको भी इस संसाररूपी दुःखसागरसे निका- कोई घड़ेमें भी हाथ डाल देते हैं, उसी ही तरह विषयलने के लिये नगर नगर और ग्राम ग्राम घूमना शुरु कषायोंकी पूर्ति के लिये यह जीव संसार भरकी खुशाकिया । नीच-ऊँच, अमीर ग़रीब सबही को अपनी सभा मद करने लगता है । अाग, पानी, हवा, धरती, पहाड़, में जगह देकर कल्याणका मार्ग बताया । प्रायः ३० सूरज, चांद, झाड़, झंड़ और नदी-नाले आदि पदार्थों वर्ष इस ही काम में बिताये और फिर ७२ वर्षकी श्रायु को भी पूजने लग जाता है । नहीं मालूम कौन हमारा में आयुकर्म पूरा होने पर इस शरीरका भी सदाके लिये कारज सिद्ध कर दे, ऐसा बेसुध होनेके कारण यदि संग छोड, पूर्ण शुद्ध बुद्ध और सत्-चित्-अानन्द स्व- कोई किसी ईट पत्थरको भी देवता बता देता है तो रूप होकर तीन लोक के शिखर पर जा विराजे, जहाँ उससे ही अपनी इच्छाओंकी पूर्तिकी प्रार्थना करने लग वह अनन्तकाल तक इसही अवस्थामें रहेंगे। कभी भी जाता है। अपने ज्ञान गुणसे कुछ भी काम नहीं लेता संसारके चक्कर में नहीं पड़ेंगे ।
है, महा नीच-कमीना बन रहा है और कण-कणसे डर वीर भगवानने स्वयं स्वतन्त्र होकर दसरोंको स्व- कर उसको पजता फिरता है। तन्त्र होनेका रास्ता बताया और इसके लिये अपने परन्तु इस जीवमें केवल एक भय कषाय ही नहीं पैरों पर खड़ा होना सिखाया । कर्मोंकी जंजीरों में जकड़े है जो हर वक्त खुशामद ही करता फिरता रहे । इसको हुए विषय-कषायोंके गुलाम बने हुए, बेबस संसारी तो क्रोध, मान, माया, लोभ, रति, अरति, भय, ग्लानि, जीवोंको समझाया कि-जिस प्रकार श्रागकी गर्मी हास्य, शोक और कामदेव यह सब ही कषाय सताती हैं पाकर ठंडा शांत और स्वच्छ पानी गर्म होकर खल- और सब ही तरह के उबाल उठते हैं। कभी घमण्डमें बलाने लगता है, तरह तरह के जोश आकर देगचीमें आकर अपनेसे कमजोरोंको पैरों तले ठुकराता है, चक्कर लगाने लग जाता है इसी प्रकार कर्मके सम्बन्ध ऊँचे दर्जेके काम करने और उन्नतिके मार्ग: