Book Title: Anekant 1940 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 54
________________ ३६८ श्रनेकान्त नया त्योहार एम्पायर डे ( साम्राज्य दिवस ) स्थापित करनेकी सम्मति है, जो विक्टोरियाके जन्मके दिन मनाया जाता है । इसका अभिप्राय है कि बच्चोंको साम्राज्य की ओर अपने कर्तव्यका स्मरण रहे । (२) शहरों, बाजारों और अन्य स्थानोंकानाम बुजुर्गों के नाम पर रखना । यह रिवाज सारे संसार में पाई जाती है । पेरिस में सारे शहर में नेपोलियनका नाम गूँजता है । उसकी बिजय जयन्तियोंकी तारीख हर गली-कूचें की दीवारों पर लिखी हुई है । यहाँ तक कि जिन तारीखों पर कोई प्रसिद्ध जातीय घटना हुई है, उनको भी किसी जगह का नाम बना दिया है, मसलन एक गली और स्टेशनका नाम “४ सितम्बर" है । पहले पहल मैं चकित रह गया कि यह क्या मामला यह ४ सितम्बर क्या वस्तु है ? किन्तु मालूम हुआ कि इसी प्रकार १४ जुलाई आदि नाम भी हैं । लन्दन में ट्राफलगर चौक, वाटरलू स्टेशन इंगलिस्तानकी जल और थल शक्तिकी यादगारें हैं। फाँसके कोई कोई जहाज़ फाँसके विद्वानों के नाम पर हैं । 1 (३) खास तौर पर मूर्ति या मकान बनानामूर्ति सदासे बुजुर्गोंकी यादगार स्थापित करने का अच्छा तरीका चला आया है । अतः लन्दन और पैरिस में मूतियोंसे बड़े मन्दिर बन रहे हैं। पेरिसमें लूथर अजायब घरी पर सैंकड़ों मूर्तियाँ बराबर-बराबर लगाई गई हैं । मानों वे पत्थरकी शक्लें अपने बच्चोंके कारोबार प्रेम भरी दृष्टिसे देख रही हैं । लन्दन में प्रत्येक पग पर किसी न किसी महापुरुषकी मूर्ति दिखलाई पड़ती हैं । मानों हर गली में जातीय इज्जतका चौकीदार खड़ा है । एल्बर्ट की स्मृति में एक बड़ा ही शानदार मकान बनाया गया है और नेपोलियनका मकबरा पेरिस में एक देखने योग्य वस्तु है । (४) बच्चों के नाम रखना - जाति अपने मकानों और बाज़ारोंको महापुरुषोंके नामसे पवित्र करती है, तो क्या अपने प्यारे बच्चों को, जो उसकी सबसे बड़ी सम्पत्ति है, इस आशीर्वाद से वञ्चित रख सकती है ? प्रत्येक जाति अपने बच्चोंको वे नाम देती है, जिनका [फाल्गुन, वीरनिर्वाण सं०२४६६ जीवित रखना उसका कर्तव्य है । मानों हमारे बच्चे उत्पन्न होते ही जातीय इतिहास में भाग लेने वाले बन जाते हैं। और यद्यपि अभी तुतलाना भी नहीं सीखा, तो भी चुपचाप जातीय, प्रतिष्ठाको प्रकट करते हैं। क्यों न हो; इतिहास उन्हीं की तो बपौती हैं। जो कुछ बुजुर्गों कमाया था और जो कुछ हमने प्राप्त किया है, सब उन्हीं के लिए है, और किसके लिए है ? ( ५ ) पाठशालाओं में शिक्षा - पहले सभ्य जाति बच्चोंको पाठशालाओं में अपना इतिहास सिखाती है और उसको रोचक बनाती है महापुरुषोंके चित्र उसमें लगाती है । देशभक्तिपूर्ण कविताएँ पढ़ाई जाती हैं। (६) कवियों की वाणी - जब कोई कवि क़लम लेकर बैठता है, तो वह बहुधा महापुरुषोंकी गाथा सुनाता है । जातीय इतिहासके अगणित आकर्षक दृश्य, जातीय सूरमाओं के कारनामे, जातीय अस्तित्व और उन्हीं के लिए प्रयत्नोंको कथाएँ, ये सब उसकी आँखों में फिरती हैं और उसकी जिव्हाको पाचन शक्ति प्रदान करती है : बैठे तनरे तवाको जब गर्म करके मीर, कुछ शीरमाल सामने कुछ नान कुछ पनीर | जातीय इतिहासकी सैकड़ों कथाओं में से कोई फड़कती हुई कहानी कह डालता है और जातिको सदा के लिए अपना प्रेमी बना जाता है । (७) इतिहास विद्या विद्वानोंकी सहायता -- प्रत्येक यूनीवर्सिटी ( विश्वविद्यालय ) में कई प्रोफेसर शिक्षक ) होते हैं, जो इतिहासके अध्ययनमें लगे रहते हैं; और जातिको अपनी जानकारीसे लाभ पहुँचाते हैं । वे दिन-रात परिश्रम करते हैं और जातीय इतिहासके सम्बन्धमें छान बीन और अन्वेषण करने में संलग्न रहते हैं । (चाँद उद्धत ) * अनुवादक - श्री नारायणप्रसाद अरोड़ा, बी० ० भूतपूर्व एम० एल० सी०

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