Book Title: Anekant 1940 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अनेकान्त
चैत्र, वीर नि० सं० २४६६
अप्रैल १९४० -
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वीर-स्तवन
[ १ ]
पराग रेणु,
बानसे
जयति जिनेश-पद-पदम परसि परम-पापी पावन पलाये हैं । प्रचण्ड - चण्ड-चण्डकोश नागपति, पल माँहि घोर क्रूर भाव विसराये हैं | विजय- विनत-नर अमर चमर-इन्दूमाथके मुकुट चूम जाहि शोभा पाये हैं । भव के गहन जल-निधि में शरण - हीन पोतसम तिन्हें भवजलसे तिराये हैं । [ २ ]
रजनि भयावनी में गाजे घनघोर घन, घन अन्धकार सब तारागण मन्दजी | कड़कड़ कड़क सौदामिनि-दमक घोर, जग-जीव काँप, यह कैसो दुःख - कन्दजी || दुख दलियेको त प्रकटे हैं वीर मानो
वीर घन-चीवरको पुनमके चन्द जी । जयति जिनन्द जगजीव के श्रानन्दकन्द,
टारे भव - फन्द द्वन्द, त्रिशला के नन्दजी ||
वर्ष ३, किरण ६
वार्षिक मूल्य ३०
[ ३ ]
कौन पोत- सम भव- जलसे उतारे पार १ कौन मेघ-सम जग-ज्वालन बुझात है ? कौन महा-मोह व्याधि शमन करन-हितचतुर भिषग-सम भेषज बहात है ?
संसार गहन निरजन बन-बीच भूलेजनको दे शान्ति कौन मारग सुझात है ? 'बसन्त' - सम कौन उपवन-हित वीर- पादपद्म और न लखात है | [ ४ ]
कहत
[ ले० - श्री० चसन्तीलाल न्यायतीर्थ ]
जुगलकिशोर मुख्तार
अधिष्ठाता वीर सेवामन्दिर सरसावा (सहारनपुर)
कौन
कौन चिन्तामणि- सम पूरे जन-मन-काज १ कौन दिनमणि-सम मोहको नसात है ? हिमकरण-सम तप्त - जन-मुदकारी ? कौन इन्दु सम भवि चकोर सुहात है ? कौन सिंह-सम कर्म करिको विदारे कुम्भ ?
कौन अरविन्द संत भ्रमर लुभात है ? चातकको मेघ-जिम कहत 'वसन्त' ताहि तजि वीर-पाद-पद्म और न लखात है ॥
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सम्पादक
संचालक
तनसुखराय जैन
कनॉट सर्कस पो० बो० नं० ४८ न्यू देहली ।
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मुद्रक और प्रकाशक - अयोध्याप्रसाद गोयूलीय ।
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