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वर्ष ३, किरण ५ ]
जातियाँ किस प्रकार जीवित रहती हैं ?
नहीं डरते, पहाड़ोंकी गुफाओंसे
परहेज़
नहीं करते ।
जो तप श्रावश्यक होगा करेंगे। अगर पेरिस पहुँचना हो, तो एक पल भर में जा धमकेंगे। अगर समुद्रकी हमें प्रयोग करना हो, तो पानीके कीड़े बनकर रहेंगे, क्योंकि हम उस अमृतकी तलाश में हैं । श्राज भारतवर्ष जातीय जीवनका गुर ढूँढता है । जान निकल रही है । धर्म और जाति पर प्रत्येक श्रोरसे आक्रमण हो रहे हैं । आसपासक जातियाँ कहती हैं कि इसमें अब क्या रहा है । राम-नाम लो और तैयारी करो । इतिहासकारों की सम्मति हैकि अब आगे इससे कुछ नहीं बनेगा - ऐसी दशामें हम उस श्रात्म-जोबन बूटीके लेनेको हिम्मतकी कमर बाँधकर चले हैं, जिससे हमारी जाति पुनः जीवित हो । हनुमानजी ने एक लक्ष्मणजी के लिए पहाड़ उलट डाले | हम क्या अपने हिन्दू बच्चों के लिए, जिनमें से एक-एक राम-लक्ष्मणकी तस्वीर है, सारी ज़मीनको उलट पलट न कर देंगे कि उनकी बर्वादीके जो समान दिखाई देते हैं उनको दूर किया जाय ।
संसारके इतिहासके अध्ययनसे क्या सिद्धान्त मालूम हुए हैं, जिन्हें पूर्व और पश्चिमके विद्वानोंने अपनी किताबों में बयान किया है । जातीय उन्नतिके नियम भूतकालके वर्णनों में छिपे हुए हैं। मरने नाले मर गये । परन्तु हमको जीवित रहनेकी तरकीव बता गये हैं । जो कुछ मनुष्य जातिने किया है, उस दास्तान का अक्षर अक्षर हमारे लिए पवित्र है, क्योंकि हम उससे जातीय और देशके आन्दोलनको सफलताके साथ चलाने की तदवीर सीखते हैं ।
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संसारका इतिहास क्या ही समुद्र है, जिसमें गणित जवाहर मौजूद हैं; जिन्हें बुद्धिमान गोताखोर निकालते हैं और अपनी प्रियतमा जातिके सम्मुख उपस्थित करते हैं । इन विचारों और सिद्धान्तोंको
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जाति बड़े यत्नसे रखती है। इनकी इस प्रकार रक्षा करती है जैसे साँप खजाने पर बैठता है। वैज्ञानिक विद्वान् सोच-विचारके पश्चात् जो ज्ञान इतिहाससे प्राप्त करते हैं उनसे जातिकी मुक्ति होती है । ज्ञानकी कद्र न करने वाले नष्ट होते हैं । उसको सरखों पर रखने वाले इस लोक में भी और परलोक में भी अपने मनोरथोंको पाते हैं ।
हिन्दुस्तान के लिए संसारका इतिहास क्या सन्देश लाता है ? जो जातियाँ चल बसी हैं उन्होंने भीष्म पितामहकी तरह मृत्यु शैय्यासे हमारे लिए क्या संदेश छोड़ा है ? जिन जातियोंकी श्राज सब तरह से चलती है उनकी मिसालसे हमको क्या शिक्षा मिलती है ? जातीय उन्नतिके एक मोटे सिद्धांत पर विचार करना उचित मालूम देता है। सारे अंगों पर विचार करना असम्भव है । गागर में सागरको क्योंकर बंद किया जा सकता है । “जातीय जीवनका एक बड़ा सिद्धान्त जातीय इतिहासको जीवित रखना है ।"
कुछ दकियानूसी पण्डित यों कहेंगे कि क्या बात बताई है। जप नहीं बताया, तप नहीं सिखाया; श्राद्ध, कर्म, पाठ आदि कुछ अच्छी तरकीब भी नहीं समझाई जिससे जातिका लाभ होता । यह क्या वाहियात व्यर्थका सिद्धांत निकाला है । यह भी कोई सिद्धांत है ! इसमें क्या खूबी है ! यह कौन सी बारीक बात है । दर्शन नहीं, वेदान्त-सूत्र नहीं, योगाभ्यास नहीं, सर्व-दर्शन संग्रह नहीं। यह हेतु हेतुमद्भूतकी गणना किस रोगकी दवा है ? यह मरघटकी सैर किस बीमारी के लिए लाभकारी है ? इतिहास क्या है, यही कि अमुक मरा, अमुक पैदा हुया । अस्तु, अब मुर्दोंका क्या रोना । स्यापे