Book Title: Anekant 1940 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 31
________________ वर्ष ३, किरण ५] सरल योगाभ्यास .. ३४५ इस योगकी साधक एक हठयोगकी क्रिया भी दूसरा अभ्यास वर्णित कर देना हम यहाँ उचित समझते हैं । हठयोग हमेशा राजयोगका सहायक होताहै। वह अकेला कोई प्रेमयोग कार्य सिद्ध नहीं कर सकता तथा राजयोग भी हठयोगके जा घट प्रेम न संचरै सो घट जान मसान । बिना अपूर्ण और समयसाध्य तथा अनेकबार असंभव जैसे खाल लुहारकी सांस लेत बिनु प्रान ॥ हो जाता है। -कबीर किसी समतल स्थानमें चित्त लेट जाश्रो तथा नख प्रेमयोगके विषयमें सबसे पहले घेरण्डसंहिताका पर्यंत समस्त नाड़ियोंमेंसे प्राणशक्ति-मन-खींच कर निम्न वाक्य जानने योग्य है:नाभिमें,हृदयमें अथवा भूमध्यमें धारण करनेकी कोशिश स्वकीयहृदये ध्यायेदिष्टदेवस्वरूपकम् । करो, तथा ऐसा करते समय पाँवके अंगूठेको स्थिरदृष्टि - चिंतयेत् प्रेमयोगेन परमालादपूर्वकम् ॥ से देखते रहो। ऐसा करनेसे श्वासोच्छवासकी गति आनंदाश्रुपुलकेन दशाभावः प्रजायते । धीमी पड़ जायगी तथा हाथपैर हिलाने डुलानेसे मुर्दे के समाधिः संभवेत्तेन संभवेच मनोन्मनी ॥ समान दिखेंगे-डोलेंगे तथा धीरे धीरे एक मीठी निद्रासी इसमें बतलाया है कि अपने हृदयमें इष्टदेवके आ जावेगी । इस निद्राका नाम 'योगनिद्रा' या 'मनो- स्वरूपका ध्यान करके परम आहादपूर्वक प्रेमयोगसे न्मनी' है और करीब १ माह के अभ्याससे सिद्ध हो उसका चिंतवन करे । ऐसा करनेसे इस सारे शरीरमें जाती है । यह बच्चोंको सबसे जल्दी, जवानोंको देरसे रोमांच हो आता है, आँखोंसे आनंदके अश्रु गिरने और बूढ़ोंको बहुत देरसे सिद्ध होती है । इस अभ्या- लगते हैं और कभी कभी समाधि लग जाती है तथा सके करने के पहले शवासनका अभ्यास करना चाहिए। मनोन्मनी (योगनिद्रा) भी संभव होती है। इस आसनम हाथ-पैर आदि अंग इतने ढीले छोड़ने वास्तवमें श्रात्माका अात्माके प्रति जो आकर्षण पड़ते हैं कि वे मुर्दे के अंगोंके समान हो जाते हैं । किसी है उसका नाम प्रेम है । प्रेम वह भाग है जो न जाने मित्रसे. हाथ-पैर हिलवा-डुलवाकर इस श्रासनकी परीक्षा कितने कालसे और न जाने किसके लिये मनुष्यमात्रको करवा लेनी चाहिये । विकल कर रही है। कभी कभी यह आग किसीके संगसे, किसीके स्पर्शसे कुछ समय के लिये ठंडी हुईसी इस अभ्यासके सिद्ध होने पर तुम देखोगे कि मालूम होती है परन्तु फिर वह उससे कहीं तीव्र गतिसे जितनी विश्रांति और लोग दस घंटेकी नींदसे भी नहीं प्रज्वलित हो उठती है ! कवियोंमें वह काव्यरूपमें, तपपाते उतनी विश्रान्ति तुम दो घंटेकी नींदसे ही प्राप्त कर स्वियोंमें तपरूपमें, योगियोंमें ध्यानरूपमें, पक्षियोंमें सकोगे । नैपोलियनको यह निद्रा सिद्ध थी, वह २४-२४ गानरूपमें तथा सिद्धोंमें मैत्री, करुणा, क्षमा और श्रघंटेकी थकावट घोड़े पर चढ़े-चढ़े २०-२५ मिनिटकी हिंसारूपमें फूट पड़ती है । नींदसे निकाल लेता था । सुनते हैं कि महात्मा गाँधीको विश्व में प्रेमके सिवाय एक और भी आकर्षण है भी यह निद्रा सिद्ध है; योगियोंमें यह साधारण वस्तु है। जो लोकमें कभी कभी भूलसे प्रेमके नामसे पुकारा

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