Book Title: Anangdhara
Author(s): Veersaagar Jain
Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha

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Page 5
________________ अनंगधरा कन्याकानामकरण धुमधामसेन Gee POSI कियागयाIOG) 606000000 6000 50 00000 600000 /महाराज इस (कन्याकानाम अनंगधराहोगा। 0 राजकुमारी कीजय सम्राट चक्रधर कीजय अनंगधरा द्वितीयाकेचन्द्रकीऑतिबदझेललीसम्राट-चक्रधर अनंगधसकी शिक्षाके लिए उच्चकोटि के विद्वानों का प्रबन्धकले महार टाअन अबबर्डी या हामहाराज! अब इसकी शिक्षा काप्रबन्धहोनाचाहिए काकचेष्टावको ध्यानम, शाबाशपुत्री. अर्थात कौर के समान श्वाननिद्रा तथैवच/अल्पहारी अबइसका दृष्टि,बगुले के समानगृहत्यागी विद्यार्थीपंचमभण:। अर्धबताओ ध्यान श्वानकीतरहनिद्रा अल्पहारगृह (व्यूगया केपाँच लक्ष्यहर

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