Book Title: Anangdhara Author(s): Veersaagar Jain Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha View full book textPage 6
________________ जैन जाग्रति चित्रकथा यह संसार छः द्रव्यों के समूह से मिलकर बना है इसे बनाने वाला कोई तुम्हारा कल्याण नहीं है यह स्वनिर्मित होगा। सम्राट चक्रधर राजकुमारी की धार्मिक शिक्षा का भी प्रबन्ध करते हैं, जिसे जीवन में ( उतारने पर 'देखो पुत्री। मै तुम्हें संक्षेप में जिनवाणी का रहस्य बताता है भगवान तो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हैं। वे तो मात्र जानते (हैं और देखते है जो ज्ञाता-द्रष्टा हो और सुख दुःख का अनुभव करता हो. उसे चेतन द्रव्य कहते हैं जो ज्ञाता द्रष्टा न हो अच्छा तो मैं जीव हूँ और सुख-दुःख का और महल मुकानादि अनुभव न करता हो उसे अचेतन द्रव्य, कहते हैं। ॥ अजीव है न! हाँ, शाबास से क्या लाभ है ? 4 फिर भगवान् क्या करते हैं। गुरुजी? गुरुरूजी!/ जीवअजीव की पहिचान COPage Navigation
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