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जैनजागति चित्रकथा चक्रधर अपने बाईस हजार पुत्री के साधमुनिराज के समक्ष पहुंचते हैं।
महाराज! हमें आत्मभिव्य जीवों तुमधन्य कल्याण हेतु मुनि दीक्षा HD हो जोकितुम्हमुनि दीक्षार" प्रदान कीजिये
उत्पन्न हुएहै।
केपविध भावू.
भव्य जीवों! दुश्व-रागद्वेष
होनसे होता है।
निज-चैतन्य स्वरुपको पहचाने बिना शरीरसेअपना-पन नही मिट
सकता ।
और शरीर में अपनापन मिट पिना रागद्वेष नहीं मिट सकता है।
राग-द्वेषकेमिटे बिना जीवको सच्चा सुख
सकता है।
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