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जाग्रति
खतौला
संस्थान
مال
जैन जाग्रति श्री चित्रकथा
Manishner
अनगधरा
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| प्राक्कथन ।
'अनंगधरा' नामक यह चित्रकथा हमें आज आपके हाथों में समर्पित करते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। 'अनंगधरा राम के भाई लक्ष्मण की पत्नी विशल्या के पूर्वभव की अत्यधिक प्रेरणास्पद कहानी हैं, जिसे हमने आचार्य रविषेण द्वारा विरचित 'पद्मपुराण' (सन् 677 ई0) से लिया है।
सभी स्वाध्यायप्रेमी जानते है कि पद्मपुराण, प्रथमानुयोग का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और प्रतिनिधि ग्रन्थराज है, अतः उसके आधार से तैयार हुई इस चित्रकथा के विषय में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाना है।
- अनंगधरा के जीवन से हमें मुख्य रूप से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने शील, संयम एवं समतादि गुणों को नहीं छोड़ना चाहिये। अनंगधरा के समाधिमरण का प्रसंग प्रत्येक आत्मार्थी को समाधिमरण के लिये बलवती प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करता है।
यदि प्रस्तुत चित्रकथा को पढ़कर एक भी व्यक्ति समाधिमरण के अभ्यास में जुट गया तो हम अपना प्रयत्न पूरी तरह सफल समझेंगे। प्रथम संस्करण : भगवान महावीर निर्वाण दिवस 1993 ई0 . द्वितीय संस्करण
श्रुतपंचमी 1999 मूल्य
आठ रुपये मात्र प्राप्ति स्थान
जैन जाग्रति सत्साहित्य विक्रय केन्द्र 32, तगान, खतौली (मुज़फ्फरनगर) उ0 प्र0 - 2512013 : (01396) 72666, 73795 (नोट : यहाँ सभी प्रकाशनों का दिगम्बर जैन साहित्य उपलब्ध है।)
:: प्रकाशक:: श्री जैन जाग्रति संस्थान (रजि0) 32, तगान, खतौली-251201, जिला मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
• मुद्रक : प्रगति प्रिन्टर्स टी० पी० नगर, मेरठ।
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नगमाया
सम्पादक प्रोफसर वीरसागर जैन
लेखक: |
चित्रांकन जाग्रति
मनीष"आर्टसवतोलो
TOD
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JABARLIA
लाखों वर्षों पुरानी बात है। महाविदेह क्षेत्र में पुंडरीक नामक देशथी। उसदेश मेंस्वर्ग केसमान-समस्त
वैभव से सुसज्जितश्यक त्रिभुवनानंद नामक नगर था।इस देश में कामदेवतुल्य चक्रवर्ती सम्राट चक्रधर राज्य करतेथे चक्रधर बहुत हीन्यायप्रिय व कुशलशासक थे! उनके राज्य में प्रजा बहुतूही सुखी थी!किसी को कोई दुश्वनहीं था! एक दिनजबराजा चक्रधरनित्या कीभाँति राजदरबारमें_ठेहएथे। तभीमहले से एक दासीने दरबार में प्रवेश किया।
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कहोदासी, क्याबातह
००००००००००००
महाराज (कीजय हो!
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जैन जाग्रति चित्रकथा
०००
चन्द्रमा के समान सुन्दरपुत्रीको जन्मदिया।
पुत्रीकामा
धन्य है। लोदासी
यहलो/
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मंजीजी! आज हमबहुतखुशहा जाओ-जिन मंदिशे मेअनुष्ठान कराओं वराज्य में मिष्ठान
वितरितकराओ।
जाआजा महाराजा
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महारानी आजहम बहुत खुश है। हम अपनी पुत्रीका
(जैसीआपकी च्छास्वामी.
नामकरण धमधाम
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अनंगधरा कन्याकानामकरण धुमधामसेन
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/महाराज इस (कन्याकानाम अनंगधराहोगा।
0
राजकुमारी कीजय
सम्राट चक्रधर
कीजय
अनंगधरा द्वितीयाकेचन्द्रकीऑतिबदझेललीसम्राट-चक्रधर अनंगधसकी शिक्षाके
लिए उच्चकोटि के विद्वानों का प्रबन्धकले
महार
टाअन
अबबर्डी
या
हामहाराज! अब इसकी शिक्षा
काप्रबन्धहोनाचाहिए काकचेष्टावको ध्यानम,
शाबाशपुत्री. अर्थात कौर के समान श्वाननिद्रा तथैवच/अल्पहारी
अबइसका दृष्टि,बगुले के समानगृहत्यागी विद्यार्थीपंचमभण:। अर्धबताओ ध्यान श्वानकीतरहनिद्रा
अल्पहारगृह
(व्यूगया
केपाँच
लक्ष्यहर
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जैन जाग्रति चित्रकथा
यह संसार छः द्रव्यों के समूह से मिलकर बना है इसे बनाने वाला कोई तुम्हारा कल्याण नहीं है यह स्वनिर्मित होगा।
सम्राट चक्रधर राजकुमारी की धार्मिक शिक्षा का भी प्रबन्ध करते हैं, जिसे जीवन में ( उतारने पर
'देखो पुत्री। मै तुम्हें संक्षेप में जिनवाणी का रहस्य बताता है
भगवान तो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हैं। वे तो मात्र जानते (हैं और देखते है
जो ज्ञाता-द्रष्टा हो और सुख दुःख का अनुभव करता हो. उसे चेतन द्रव्य कहते हैं
जो ज्ञाता द्रष्टा न हो अच्छा तो मैं जीव हूँ और सुख-दुःख का और महल मुकानादि अनुभव न करता हो उसे अचेतन द्रव्य, कहते हैं।
॥
अजीव है न! हाँ, शाबास से क्या लाभ
है ?
4
फिर भगवान् क्या करते हैं। गुरुजी?
गुरुरूजी!/ जीवअजीव की पहिचान
CO
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अनंगधारा
इसजीवने आजतक चेतन-अचेतन को भिन्न नहीं पहिचाना है। इसीलिए यह चर्तुगूतिरूप संसार में परिभ्रमण कर रहा है।
(यह जीव अपनीअजानता सेपश्पदार्थो में इष्ट अनिष्ट कीकल्पना कर रागद्वेष
करता है ।
TAI
इसप्रकार सभीजीव स्वयं की भूल के कारण
कोई किसी को सुख या दुःस्व नहीं दे सकता वमार या जिला नहीं सकता।
हो सकते हैं।
सब जीव अपने
तो गुरुदेव सच्चा सुख कैसे प्राप्त होगा?
।
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जैन जाग्रति चित्रकथा
यदि यह आत्मा कहीं भी रागद्वेष) नकरें और
अपने जान स्वरुप मैं ही सावधान रहे तो सच्चा सुख प्राप्त कर सकता
अतः हमे कितनी भी विषम परिस्थितियाँक्यों इस प्रकारवह सुन्दरबलिका समयकै साथ न आयें, अपने परिणाम मलिन नहीं
बढ़ते हुए अपनीयौवनावस्थाको प्राप्तहोताहै. बनाने चाहिये। सदा समता भाव धारण करना चाहिये।
इस प्रकार अनंगधशको धार्मिक ज्ञान भीहोजाना
फा
एकदिन अनंगधरा-सखियोकेसाथबागमे पहुंची।
ड्रामाझला
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अनंगधश तभीअकाशमार्गगमनकसहर विद्याधर अनंगधरापर मोहिहोनीचे उतर आया प्रतिष्ठित पुरकेराजाविद्याधर पुनर्वसूकी दृष्टिझूलतीअनंगपर
पड़ गयी.
.०००
आह! कितनी सपमतीकन्याहये क्योंनइसे अपनी
अपनी रानीबनाना होसकता। चाहता हूँ।
अनगधाराकइंकार परवह उसेबल. -पूर्वक विमान में बिछाकर उड़ गया
(भागा!
महाराजको खबरदो
महाराज अपने सैनापति को आदेश देते.....
सेनापति! जाओ तुरन्त उस दुष्ट सेकिसी भी प्रकार अनंगधरा को हुड़ाकरलाओ।
महाराजगजब) (होगया महराज
क्याहआ?
महाराज!
राजकमाराजा
को उठालेगया
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जैन जाग्रति चित्रकथा सेनापति अपने वीरों के साथ विमानमारा| विद्याधरकैपदिलगगयाral y un
सावधान दुष्ट विद्या धूर राजकुमारी को टोड्दी अन्यथा बेमौत मारा
> जाया
D
वहरहादुष्ट, चलो तेज चलो!
लेकिन सेनापति उसवारकी काट देताहे
| विद्याधर सेनापति की उल्टे आक्रमण कर देता है
संभाल
इसके बाद सेनापतिएवं अन्ययोदा एक साथ वार करते है।
इस आक्रमण से विद्याधरका विमाट
जाताह।
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विद्याधर सोचता है
और वह तीव्र गति से अनंगधरा को ले उड़ा
'अरे ये सैनिक तो (मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहे हैं !
Ooo.
वह घबराकर नीचे देखता है
इधर सैनिक
अनंग धरा
में राजकुमारी को ( लेकर कहीं भाग जाता
अरे कहाँ गया!)
?
अभी तो यहीं
था?
9
सैनिकोो वह बहुततेजी से जा रहा है। देख कहीं भाग न जाय!
0000
नीचे भयानक अटवी देखकर वह सोचता है! क्योंनमें राजकुमारी को इस भयानक अटवी में छोड़ दूँ!
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तभी विद्याधर अकेला भागता दिखाई
देता है।
अरे
वह रहा दुष्ट पकडो उसे!
लेकिन विद्याधर भाग निकला
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सेनापति जी । वह तो कहीं भाग गया है।
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कोई बात नहीं. राजकुमारी जी को ढूँढो, वे यही कही होगी।
3
जैन जाग्रति चित्रकथा
हे प्रभो!. हमने कौन से पाप किये थे जो 'हमे ये दिन भी देखने को मिल रहे हैं'
वापस आने पर सेनापति समस्त घटना बताता है। - महाराज एवं रानी सब सुनकर अत्यन्त दुखी होते हैं !
सी
आह। ये क्या हुआ? न जाने हमारी फूल राजकुमारी इस समय किस दशा में होगी ?.
राजकुमारी को खोजने सैनिक सभी दिशाओं में जाते हैं। परन्तु अनंगधरा नहीं मिलती
इस प्रकार सारा राज्य शोक में
डूब गया.
सैनिक भयानक अटवी में अनंगधरा को खोजते हैं।
राजकुमारी
जी 55
10
लेकिन उस अटवी में राजकुमारी नही मिली
महामंत्री जी । जंगल का चप्पा-चप्पा छान डालो हमें हमारी पुत्री चाहिए। जाओ मंत्री जाओ।
इधर कुछ समय पश्चात् कामांध विद्याधर अनंगधरा को लेने वापस अटवी में आता है। लेकिन उसे अनंग धरा नहीं मिलती तो उसके मन मे वैराग्य उत्पन्न होता है।
ओह! इस संसार मे संयोग-वियोग सब कर्माधीन हैं। 'मुझे चाहिये कि मैं पाप मुक्त हो आत्म कल्याण करूँ.
राज-:
कुमारी. जी 15)
10000
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. अनंगधरा समें वैराग्यपूर्ण विचार करते हुए विद्यात हे मत्यजीव. तुम्हारी पुनर्वसुमुनिराज दुमसेन के पास जाता है। हमुनिवर में इससंसार
कि तुम्हें इससंसार में) से अत्यन्त दरवी होचुका
अत्यन्तदुलभासितहुशार है अत: मुझंकल्याणका सच्या मार्गबताइये।
और आत्म कल्याण की अभिलाषाहई
(हे भव्य! यह जीव देखो काम कषाय की
कषायवश अपना अत्यन्त दारवरूपता, र हित अहित भूलकर किजिसके कारणबड़े। पागल की भाँति | बड़ज्ञानी-हयानी भी..
आचरण करता- अंधे हो जातेहैं। हआ अनंत दुःख भोगताहै।
/
उल्लू कोतो केवल दिन में नहीं दिखताव कामीजीव कौर को केवलावि में नहीं दिखाई देता परन्तु कामान्य प्राणी को तीन दिन ।
| महान्धहोता। में दिखता है, नहीं
राषि
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हे भव्य! जैसे अग्नि में घी डालने सेअग्नि बुझती नहीं, अपितु
जैन जाग्रति चित्रकथा
श्मशान में जिस प्रकार व्याघ्रमुर्देको खाकर सखी होता है, वैयेही यह अज्ञानीजीव स्त्री के दन्धित शरीरके आलिंगन सेहर्ष
बढ़ती है।
मनाता है।
उसी प्रकार भोगों कासेवन करने से भोगी की इच्छा मिटती नहीं, अपितु
बढ़ती है।
अंत: हे जीव! अत: अपनी आत्मशक्ति भोगों कात्यागकर को शरीर, इन्द्रियों आत्मानभूतिपूर्वक
विचारों और विकल्प संयमधारण करने सेहटाना चाहिये का उपायकरनाचाहिय
अपने उपयोग को अखण्ड आत्मा की ओर- अभेदपने स्थापितकरना हीस्वानुभव है और यही सुखका
सच्चा उपाय है।
पुनर्वसुवैराग्य पूर्वक कहते है।
हे प्रभु! मुझ शीघ्र ही जैनेश्व दीक्षा प्रदान कीजिये।
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अनंगधरा
और वह द्रुमसेन मुनिराज द्वारा मुजि दीक्षा ग्रहण कर लेता है
इधर वह भयानक अटवी जिसका नाम श्वापद रोख है, बहुत ही भयानक है
ऐसी भयानक अटवी में अनंगधरा भटक रही है1.000 (यहाँ मैं कहाँ आगयी. यहाँ तो सब तरफ जगल
ही- जंगल है।
अचानक उसके पैर में कॉल चुभ जाता है
(आह!
आहा
13
वह काँटा निकालने को झुकती है तभी एक शेर की भयानक गर्जना होती है-1
गुरु
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हैं। शेश
अब क्या करूँ?
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जैन जाग्रति चित्रकथा
अनंगधरा के पैर से खूनबहने लगावह विलापकरनेलगी
देवी-संसारकी विचित्रतापुण्योदय से मैं महापराकमी चक्रवर्ती की पुत्री हुईवपापोदय सेवन में भटक रही हैं। हाय मेरा
कर्मोदय।
E-MAM
कुद्द-समय पश्चात् शेरचला गया(हे प्रभु,जो स्वजन पल नहीं रह पाते
अनंगधरा विमाप करती हुई नदी के किनारे पहचा
भचिनाएक थे। वे अबकही
उसके इसविलाप को देखकर वन्य प्राणियोके | इसके बाद गर्मी का मौसम आमा ऑरवों में भी ऑन्स आगये
आह/
पानी आह।
PALAnार
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| फिरसर्दीकाभौसम आया
अनंगधरा इस प्रकार मौसमबीतने लगे अनंगधशको संसारको असारता कायामआया
भगवान ये संसारबडादुःस्व पूर्ण है जो मेरे चक्रवर्ती की पुषीका पुष्प
(देव अब
मैक्या
प्रत्येक जादु
स्पायी
होने पर मुयद्रव
झेलने पड़
प्रत्येक द्रव्य अपनी अपनी पर्यायका कर्ता है। कोई भी परका कर्ता नहीं है।
भने बचपन में सीखा है कि प्रत्येकजीव अपनी भूलके करण दुश्ची है, परपदार्थ के कारणनहीं।
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रिवह
इस प्रकार नराग्यप्रगट आत्म भावना में लीनहाने भगी
अतः हमें जगतके इप्रति रागद्वेष नकरके
समताभाव धारण करना चाहिये और अपने स्वरूप (में सावधान रहना चाहिए।
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जनजाग्रतिचित्रकथा एवं वह धर्म भावनाओं का चिंतन करतीही इष्ट-वियोग अनिष्ट-योग में,) प्रेमभावही सब जीवों से,
विश्वमानता है मातम।
हेय सभी विश्ववासना, गुणीजनों में हर्ष प्रभो।
उपादेय निर्मल आतम॥ करणास्रोतबहे दुखियोंपर। दुर्जन में मध्यस्थ विभो।
स्वयं कियेजोकर्मशुभाशुभ, फलनिश्चय ही वैदेते। एकरे आपफलदेय अन्यतो, (स्वयं कियेजिपफलहोतो
Yअपने कर्म सिवाय जीव को, कोईनफल देता कुद्द भी। पर देताहे यह विचारतज, स्थिर हो छोड़ प्रभादीबुद्धि
इसके तपके प्रभाव से हिंसकजीवभी अहिंसक होगा,
वाकररावं उपवासादि सरहकर निज आत्मा कीसा/नाकरने
भ
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अनंगधरा
एक दिन जब नंगधरासामयिक
इस प्रकार 3000 वर्ष बीत गये/-
73000 वर्ष बीत गया-
भीती उसेज्ञानहआ।
ओर/
०००० नजानेइन्यू
मुझे अब अपनी0000. गति सुधारने केलिए अधिक हयानवतप करना चाहिये।
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अपनी मुक्ति केलिर प्रयत्न करना
चाहिये।
वह संलखना धारण करनियमलेती है कि
0000००
होपर में अपना नियम भंग नहीं
आन में अपने
कर्कगी
और अपनी आत्मसाधना में लगजाती है।
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जैन जाग्रति चित्रकथा अबवह अधिक आत्मभावनामेलीन एक दिन आकाशमार्ग-से अरहदासनामक-स्करहने लगी-1
विद्याधर सुमेरु पर्वत की वन्दनाकर लौट रहाथा तोअनंगधराको देखता है
ह
वह नीचे उतर कर अनंगधरा सुनकर-पुत्री तुम मेरे- के समीप आला है।
साथ विमान में
अपने पिता और
अनंगधरा ने उत्तर दिया
वात भने ती संमेखना, अभी भी में अब नहीं
पुत्री तुम कौनही
अनंगरा ने सारी कहानी सुनाटी
पुत्री मैं तुम्हारे वन में अनंगधरा अपनी आत्मा की भावना में पिता को जाकर लीन होगयीतुम्हारी सुचना
और विद्याधर वहाँ सेचलागया
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अनंगधरा ताएकभाजक अजर- | ਨਨਾਣ,
30ਾਲੀ ਤsउधर आतह
14
कै
अनंगधरा आत्मभावना में लीन
पर भय का कोई निशान औरवह दुष्ट अजगर अनंगघरा कीपरह निगलने लगलाई
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60००० F0000
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इधर विद्याधर सम्राट चक्रधर के दरबार में जब अजगरअनंगधशको-. आकर अनंगधरा की सूचना देवाहासम्राटबहत निगलरहा था।तभीसम्राटवाड़ी
आजाते? हे भगवान
प्रसन्न होते है
....
क्या? हमारपी जीवित है चलो
जल्दी चलो वा
को हमारा
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अनंग.
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हामहाराजा राजकुमारीजीवित है चलिये महाराज
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चालतात
जैन जाग्रति चित्रकथा समचक्रका आहवान तभी अनंगराची-स्व उठती है
नहीं नाही पिता नही
चक्रप्रकट570
इसनिदोष प्राणीका
पुत्री
में अभी इस दृष्ट का काम तमाम करताह
लोकन..
अहोय हैअहिंसाकाअदभूत स्वरूप!
पिताजी आप) इसे समाकूर आयु कर्म पर
दीजिये
पिताजा आत्मा अजर अमर (हो. उ.सेको नहीं मार सकता है। फिर ये अजगर मुझे
क्या मारेगा?
अजगर पिता के सामने पुत्री को पूर्णतः निगल जाता है
अहम इक्की
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अनंगधरा अनंगधराशरीर तजकर तीसरे स्वर्ग में देवांगना ।
इधर पुत्रीकाकरण अंतदेखकर सम्राट चक्रधरकोवैशम्यहो आताहै। अहो! यह संसार तो अत्यन्त दुःखभयहे
धिक्कार है मुझे कि
इस प्रकार वैराग्यपूर्ण विचार करते हुए राज्य मैं इससंसारकीर्वाद में वापस लौटते हैं और अपने बाईस हजार पुगे कर रहाहूँ।
कोबुलातेहापों में अपने ) मुझेतीसंसार
| (आत्मकल्याणके
मिरमुनि दीक्षा कनाशकरने
रहा है। का उपायकरना
चाहिये।
लेकिन पुत्रों के मन में भी वैराग्य हिलोरेलेरहाथा अतः
वेकहते है-पिताश्री हम भी अब
महाराज सासुजकर गद्गद होजाते है (धन्यहो पुत्रों ।। तुम धन्य हो।
इस संसार मैनहीं रहना दीक्षा अंगीकार कर
चाले अत: हमेश्री मुनि
-/M
और साशवातावरण वैशम्यमयहो,
जाता है
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जैनजागति चित्रकथा चक्रधर अपने बाईस हजार पुत्री के साधमुनिराज के समक्ष पहुंचते हैं।
महाराज! हमें आत्मभिव्य जीवों तुमधन्य कल्याण हेतु मुनि दीक्षा HD हो जोकितुम्हमुनि दीक्षार" प्रदान कीजिये
उत्पन्न हुएहै।
केपविध भावू.
भव्य जीवों! दुश्व-रागद्वेष
होनसे होता है।
निज-चैतन्य स्वरुपको पहचाने बिना शरीरसेअपना-पन नही मिट
सकता ।
और शरीर में अपनापन मिट पिना रागद्वेष नहीं मिट सकता है।
राग-द्वेषकेमिटे बिना जीवको सच्चा सुख
सकता है।
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अतः अपन कौरसर
कर्मफल से भिन्न चैतन्य रूप अनुभव
करो।
अनंगधरा
जिससे राग-द्वेष कानाश होगा और सच्चा सुख
निराजसभा का निश्वरी दीक्षा प्रदान करते
सभी मुनिराज अपनी आत्मसाधना में लीन हो जाते हैं
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जैन जाव्यति चित्रकथा अनंगधशूका जीव देवगति सैय्यकर राजा द्रोपघकै यहाँ विशल्यानामक पुत्री होतीHI
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पर्व तप के प्रभावूसैविशूल्या और इस विशल्या का विवाहराजाकैस्नान किये जलसे रोगों कानाश हो जाता
दशरथ के पुत्रलक्ष्मणसे होताहै।
वाह! धन्य
विशल्याजिसके प्रभाव से मेरा
गया।
शैग दूरही
सिमाप्त
जिनधर्म के सिद्धांतों एवं कहानियों का एक जीवंत
एवं नवीन माध्यम... जैन जाग्रति चित्रकथा के सहयोगी बने
आपका यह सहयोग आबालसंरक्षक : 5000 रुपये मात्र । - गोपाल , किशोरों, युवाओं एवं प्रौढ़ो आजीवन सदस्य : 2100 रुपये मात्र।
को तो जान का कारण बनेगा ही साथ ही साथ हमें भी जिनधर्म के प्रचार-प्रसार हेतू प्रोत्साहित करेगा।
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SZECSUUT
अवश्य पढ़िये : - जिनवाणी को आखिर क्यों लिखा
गया ? जिनवाणी को कैसे लिखा गया? जिनवाणी को सर्वप्रथम किसने लिखा? इन सभी सवालों के जवाब के लिये अवश्य पढ़ें ........ रोमांचक चित्रकथा
षटवडागम
आगामी प्रकाशित चित्रकथाएँ (कॉमिक्स) 1. अकलंक - निकलंक 2. आचार्य समन्तभद्र 3. आचार्य कुन्दकुन्द 4. आचार्य मानतुंग 5. मुनि गजकुमार
पंडित टोडरमल
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________________ बच्चों में धार्मिक संस्कार डालिये / रविवारका दिन है। आजदुट्टी है। रमेशका घर है। अजी-सुनती हो र आजपतालगा आपको (मैतीशेजानाही यह सब येबच्चे इतनाशीर) क्यों मचा रहे (अजी बतानेपर होतुमक्याकरते? (अच्छा यूजी वहाँ बच्चोंकोक्या-२ सिरवाया जाता सुभेकरनाही (क्या है अपने जिन वहाँबच्चाकोधार्मिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा एवं सांस्कतिककार्यक्रम | और सरला सभी ओ दी जाती है। जीजू-मोनू की / जी हाँ! आप भी अपने बच्चों में धार्मिक संस्कार हेतु अप को अपने यहाँ जैन धार्मिक पाठशाला में आजहीसे भेजे