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सेनापति जी । वह तो कहीं भाग गया है।
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कोई बात नहीं. राजकुमारी जी को ढूँढो, वे यही कही होगी।
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जैन जाग्रति चित्रकथा
हे प्रभो!. हमने कौन से पाप किये थे जो 'हमे ये दिन भी देखने को मिल रहे हैं'
वापस आने पर सेनापति समस्त घटना बताता है। - महाराज एवं रानी सब सुनकर अत्यन्त दुखी होते हैं !
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आह। ये क्या हुआ? न जाने हमारी फूल राजकुमारी इस समय किस दशा में होगी ?.
राजकुमारी को खोजने सैनिक सभी दिशाओं में जाते हैं। परन्तु अनंगधरा नहीं मिलती
इस प्रकार सारा राज्य शोक में
डूब गया.
सैनिक भयानक अटवी में अनंगधरा को खोजते हैं।
राजकुमारी
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लेकिन उस अटवी में राजकुमारी नही मिली
महामंत्री जी । जंगल का चप्पा-चप्पा छान डालो हमें हमारी पुत्री चाहिए। जाओ मंत्री जाओ।
इधर कुछ समय पश्चात् कामांध विद्याधर अनंगधरा को लेने वापस अटवी में आता है। लेकिन उसे अनंग धरा नहीं मिलती तो उसके मन मे वैराग्य उत्पन्न होता है।
ओह! इस संसार मे संयोग-वियोग सब कर्माधीन हैं। 'मुझे चाहिये कि मैं पाप मुक्त हो आत्म कल्याण करूँ.
राज-:
कुमारी. जी 15)
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