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चालतात
जैन जाग्रति चित्रकथा समचक्रका आहवान तभी अनंगराची-स्व उठती है
नहीं नाही पिता नही
चक्रप्रकट570
इसनिदोष प्राणीका
पुत्री
में अभी इस दृष्ट का काम तमाम करताह
लोकन..
अहोय हैअहिंसाकाअदभूत स्वरूप!
पिताजी आप) इसे समाकूर आयु कर्म पर
दीजिये
पिताजा आत्मा अजर अमर (हो. उ.सेको नहीं मार सकता है। फिर ये अजगर मुझे
क्या मारेगा?
अजगर पिता के सामने पुत्री को पूर्णतः निगल जाता है
अहम इक्की
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