Book Title: Anangdhara
Author(s): Veersaagar Jain
Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha

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Page 20
________________ जैन जाग्रति चित्रकथा अबवह अधिक आत्मभावनामेलीन एक दिन आकाशमार्ग-से अरहदासनामक-स्करहने लगी-1 विद्याधर सुमेरु पर्वत की वन्दनाकर लौट रहाथा तोअनंगधराको देखता है ह वह नीचे उतर कर अनंगधरा सुनकर-पुत्री तुम मेरे- के समीप आला है। साथ विमान में अपने पिता और अनंगधरा ने उत्तर दिया वात भने ती संमेखना, अभी भी में अब नहीं पुत्री तुम कौनही अनंगरा ने सारी कहानी सुनाटी पुत्री मैं तुम्हारे वन में अनंगधरा अपनी आत्मा की भावना में पिता को जाकर लीन होगयीतुम्हारी सुचना और विद्याधर वहाँ सेचलागया

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