Book Title: Anangdhara
Author(s): Veersaagar Jain
Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha

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Page 18
________________ जनजाग्रतिचित्रकथा एवं वह धर्म भावनाओं का चिंतन करतीही इष्ट-वियोग अनिष्ट-योग में,) प्रेमभावही सब जीवों से, विश्वमानता है मातम। हेय सभी विश्ववासना, गुणीजनों में हर्ष प्रभो। उपादेय निर्मल आतम॥ करणास्रोतबहे दुखियोंपर। दुर्जन में मध्यस्थ विभो। स्वयं कियेजोकर्मशुभाशुभ, फलनिश्चय ही वैदेते। एकरे आपफलदेय अन्यतो, (स्वयं कियेजिपफलहोतो Yअपने कर्म सिवाय जीव को, कोईनफल देता कुद्द भी। पर देताहे यह विचारतज, स्थिर हो छोड़ प्रभादीबुद्धि इसके तपके प्रभाव से हिंसकजीवभी अहिंसक होगा, वाकररावं उपवासादि सरहकर निज आत्मा कीसा/नाकरने भ 16

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