Book Title: Anangdhara
Author(s): Veersaagar Jain
Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha

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Page 19
________________ अनंगधरा एक दिन जब नंगधरासामयिक इस प्रकार 3000 वर्ष बीत गये/- 73000 वर्ष बीत गया- भीती उसेज्ञानहआ। ओर/ ०००० नजानेइन्यू मुझे अब अपनी0000. गति सुधारने केलिए अधिक हयानवतप करना चाहिये। MA अपनी मुक्ति केलिर प्रयत्न करना चाहिये। वह संलखना धारण करनियमलेती है कि 0000०० होपर में अपना नियम भंग नहीं आन में अपने कर्कगी और अपनी आत्मसाधना में लगजाती है।

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