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जैन जाग्रति चित्रकथा
अनंगधरा के पैर से खूनबहने लगावह विलापकरनेलगी
देवी-संसारकी विचित्रतापुण्योदय से मैं महापराकमी चक्रवर्ती की पुत्री हुईवपापोदय सेवन में भटक रही हैं। हाय मेरा
कर्मोदय।
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कुद्द-समय पश्चात् शेरचला गया(हे प्रभु,जो स्वजन पल नहीं रह पाते
अनंगधरा विमाप करती हुई नदी के किनारे पहचा
भचिनाएक थे। वे अबकही
उसके इसविलाप को देखकर वन्य प्राणियोके | इसके बाद गर्मी का मौसम आमा ऑरवों में भी ऑन्स आगये
आह/
पानी आह।
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