Book Title: Anangdhara
Author(s): Veersaagar Jain
Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha

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Page 15
________________ अनंगधरा और वह द्रुमसेन मुनिराज द्वारा मुजि दीक्षा ग्रहण कर लेता है इधर वह भयानक अटवी जिसका नाम श्वापद रोख है, बहुत ही भयानक है ऐसी भयानक अटवी में अनंगधरा भटक रही है1.000 (यहाँ मैं कहाँ आगयी. यहाँ तो सब तरफ जगल ही- जंगल है। अचानक उसके पैर में कॉल चुभ जाता है (आह! आहा 13 वह काँटा निकालने को झुकती है तभी एक शेर की भयानक गर्जना होती है-1 गुरु SS हैं। शेश अब क्या करूँ?

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