Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 1
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 12
________________ ३ संपादकीय वक्तव्य फ्र “ॐ णमो उवीसाए तित्ययराणं उसभाई महावीर पजवसाणाणं । णमो गोयमाईमहामणीणं । इक्कारस अंगाई, बारसुवंगा पन्नगा दस य । छेया छ चऊ मूला, नंदी अणुओगा णमंसामि ॥१॥" साहित्यमां ऊंडा ऊतरेला रसिकोने विविध विषयोना बोधनी आवश्यकता रहे छे. जे विषयनो बोध जे मनुष्यने होवो जोइओ ते बोध सिवायनो मनुष्य ते विषयने ग्रहण करवा जाय तो अज्ञानी वांदरानी जेम "मने पकडयो - मने पकडयो" जेवी अनी दशा थाय. तेथी ते विषयना बोध माटे ते विषयना शब्दना ज्ञाननी, अर्थना ज्ञाननी अने तेना भावार्थना ज्ञाननी, अर्थात् ते पदार्थना शब्दार्थ, भावार्थ अने पर्यानी जरूर छे. जो ते समज्या सिवाय प्रवृत्ति कराय तो भोजन करवा बेठेलो 'सैंधव' मंगावे अने 'घोडो' लावे तेना जेवुं थाय. शब्दना बोध करनारूं जे साहित्य होय तेने 'शब्दकोष' आदि शब्दथी संबोधी शकाय एवा 'शब्रकोषोनी उत्पत्ति कां तो आगमोमां आवेला पर्यायो रूपे आपी होय कां तो निघण्टु जेवा 'शब्दकोष' रूपे होय, अथवा बीजा घणाओ 'शब्दकोषो' रूपे होय. आधी दरेक भाषावार अनेक 'शब्दकोषों' योजाया छे अने योजाय छे. जैन दर्शन माटे तो ते शब्दोना अर्थ टीकाकारोप प्रकरणना आधारे जे रीते मंजुर कर्या छे ते तेज लेवा योग्य छे. शब्दो यौगिक, रूढ अने मिश्र एम साहित्यकारोप मान्या छे, ते यथार्थ छे. आधी जैन दर्शनमां ऊंडा ऊतरवावाळाने पण ते बोधनी जरूर तो छे ज, तेथी तेवा प्रकारना 'शब्दकोष 'नी जरूरियात मानवीज पडे. आ उद्देश लक्ष्यमां लइशुं तो जैन दर्शनमां आवता शब्दोना अर्थवाला अनेक कोषो होवा छतां पण आ नवा कोष माटे स्थान छे ज. संकलनाकार - ग्रन्थकार स्वतंत्र लेखिनीथी जे ग्रन्थ करे तेमनी ज कृति कहेवाय छे. परंतु ग्रन्थोमांथी अत्रित करेलुं होय तो आ वधुं बीजा ज ग्रन्थोमांनुं छे, एम जणाववा माटे पोते संकलना करी छे एम जणावे छे. तेथी महत्त्वपूर्ण अनेक जैन ग्रन्थोना संपादक अने संशोधक, तेमज संस्कृत, पाकृत अने गुजरातीमां विविध विषयोनी कृतिओ रचनारा, र आगमोद्धारक आचार्य श्री आनन्दसागरसरीश्वरजी महाराजे सैद्धान्तिक शब्दोनी आ कोषमां संकलना करी छे, आथी आ ग्रन्थना 'संकलनाकार' प. ता. आगामोद्धारक गुरुदेवश्री छे. ( १ ) मंगळाचरण तरीके आपलं समग्र अर्धमागधी छेला ओक शब्दने छोडीने 'शिलोत्कीर्ण आगमों'नी पीटिकामांनु छे. जुओ-आगमरत्नमंजूषा शिला नं. १/१. Jain Education International 2010_05 (२) जुओ अमारी संपादन करेली पुस्तिका - ( १ ) प्रशमरति अने संबंध कारिका, परि. ३ श्री ८ 'आगमोद्धारकनी साहित्यसेवा', (२) उपदेशरत्नाकर ( भावार्थ ) पृ. १९ - २७ ' आगमोद्धारकनी साहित्यसेवा, ( ३ ) आचारांगसूत्र पृ. २५२-२५६ ‘आगमोद्धारकनी साहित्यसेवा', (४) आनंदसुधा सिन्धु भा. २. परि. ४ ' आगमोद्धारकना व्याख्यानोनी सूत्रों तथा 'आगनोद्धारककृत चेत्यावंदनादि', (५) आराधनामार्ग भा. १ पृ. २२ - २३ ' आगमोद्वारककृत चैत्यवंदनादि . (३) आ संबंधनां जुओ - " आगमोद्धारक बिरुद" से नामनों प्रो. हीरालाल २. कापडियानो लघु लेख. जे लेख गुरना "प्रभाकरपत्रना ता. १४-५-५०ना अंकमां छपायो छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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