Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 1
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 11
________________ आगमोद्धारक आचार्यवर्य श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजे 'संकलित' करेलो श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोषनो 'संपूर्ण स्वर' सुधीनो पहेलो भाग सहर्ष प्रकाशित करीए छीए. आ संस्थाना प्रथम पुस्तकना संपादक तरीके पण आचार्य देव श्रीआणंदसागरसूरिश्वरजी म हता अने बीजा सेंकडानी शरुआतना प्रथम पुस्तक तरीके पण तेओश्रीनो संकलीत अमूल्य कोष प्रसिद्ध करीए छीए. कोषनी विशिष्टता अंगे संपादकिय निवेदनमा घणु का छे, छतां अमारी संस्थाए आना प्रकाशनमां वधारे रस लीधो तेनु मुख्य कारण ए छे, के आज सुधी छपायेला प्राकृतकोषोमां अभिधानराजेन्द्रकोष, पाइयसद्दमहण्णवो आदि केटलाक कोषो छे पण तेमां न्यूनाधिकरुपे विचार करतां उपयोगितामा बाध आवे छे-जेमके अभिधान राजेन्द्र कोष प्रमाणमां एटलो बधो मोटो छे के तेमांथी कोइ शब्द शोधवा माटे वधारे परिश्रम पडे अने छपाईमां के सम्पादनमा त्रुटी रहेवाने लीधे सूत्रो अने ते ते प्रकरणो घणा परिश्रम पछी पण जडतां नथी पाईयसद्दमहण्णवोमां जैनसैद्धान्तिक शब्दो उपर वधारे भार मूक्यो होय तेम जणातुं नथी. पण प्रस्तुत ग्रन्थमां कोई पण जैन के जेनेतर विद्वान् प्रवलित जन पारिभासिक शब्दोनो यथार्थ परिचय ढूंकमां अने सहेलाइथी प्राप्त करी शके एवी तक छे, तथा मुनिराजो पण अन्य सम्पादनना कार्योमां सहायता लइ शके तेम पण छे. अमे इच्छीए छीए के आना प्रकाशनने विद्वज्जनो योग्य आदर करशे ज. __ आ कोषने अंगे संज्ञाओनी समजणो तथा ते ते ग्रन्थोनां पानांओनी सूची पण संपादक पू. महाराजोए आपी छे. ते अंगे 'संपादकीय' यांचया वांचक वर्गने अमारी विनंति छ. आ ग्रन्थना संकलनाकार प पू. आगमोद्धारक गुरुदेवश्रीनुं स्तोत्र सुमनोहर गूंथी ग्रंथने अलंकृत करनार सदा झानोद्यमीव्याकरण-साहित्य-न्यायविसारद x x x x नो उपकार मानीए छीए. अमारा प्रकाशन कार्यमा जे जे महाशयोए अमने मदद करी छे ते ते महाशयोना अमे ऋणी छीए. वि. सं. २०१० लि० भवदीय आशो सुद १५ विजयादशमि मोतीचंद मगनभाई चोकसी ता. ७-९-१९५४ विगेरे ट्रस्टीओ १ तेओश्रीनो सुरत उपर तो अनहद उपकार छे. तेओश्रीने संवत १९७४ ना वैशाख सुद १० ना सुरतमा ज 'आचाय' पदवी अपाइ हती. श्रीजैनानदपस्तकालय. श्रीवर्धमानजनताम्रपत्रागममंदिर वगेरे सुरतमा ज छ. अने सं. २००६ ना वैशाख वद ५ मे ‘स्वर्गवास' पण सुरतमा ज थयो छे. तेओश्रीनो अग्निसंस्कार पण सुरत शहेरनी मध्यवती गोपीपुरामां आगमनमंदिरना सामे जनीअदालतश्री ओळखाती जमीनमां थयो हतो. वळी तेज जग्या उपर गुरुदेवश्रीना स्मरण तरीके संपूर्ण इतिहासने जणावनाएं 'श्री आगमोद्धारकगुहमंदिर' बंधाववामां आव्यं छे. २. तेओश्रीनु मूख्य कार्यक्षेत्र सुरत ज रह्यु हतुं. तेनी प्रतिकतरीके अनेक ज्ञान पिसानी संस्थाओ स्थाइ हति. (१) शेठ देवचंद लालभाई जैन पुस्त कोद्धार फंड. (२) शेठ नगीनभाई मंछुभाई जैन साहित्योद्धार फड. (३) श्रीरत्नासागरजीजैनमीडलस्कुल ( विद्याशाला) कायमि फंड. (४) श्रीजैन तत्वबोध बोध पाठशाला वीगेरे अनेक संस्थाओ तेभोना उपदेशन ज परिणाम छे. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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