Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जगती भविनामद्य पदमहिमं दृढ़ मोह महागज केसरिणम् । तं सव्रतं जिन चन्द्रमहं प्रणमामि विभुं नृसुर प्रणतम् ॥१२॥ भवकर्म खानभिजित्य वलादसमा चल माप पदं रुचिरम् । स विभुः प्रवरोऽभयरोपकरो मतिदो वरदोऽस्तु सदोदयदः ||२॥ जगतां प्रभुतां भवितारकता भविता लविता भववल्लिवनम् । सुतपश्वरिता शिवमातनुतां जितशत्रु सुनन्दन आप्तवरः || ३॥ ** विगय सयल दोसं पुण्णं संपत्ति गेहूं पसम सुह नियाणं सव्वया सुद्ध देहं । fafter भव चक्कं भव्व पाहोय भाणु अजिय जिण वरिंद भावजुन्ता णमे मो ॥ १ ॥ अमरवर नरिदोहथुय पुर्याणज्जं तिजय विइयनामं तित्थनादं सरेमो । भवियण हियवाय पुज्जपायारविंद पसमनिहि मुहज्जं विस्सनाहं थुणेमो ||२॥ अहिय विमल सुकझाण जोइस्सरूवं पयडिय निहिलात्थत्थोम सच्चस्सरूवं । सयल हियय जोग क्लेम कज्जप्पवीणं अजिय जिगयदेवं हं नमामिप्पहाओ ॥३॥ 5 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143