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जगती भविनामद्य पदमहिमं दृढ़ मोह महागज केसरिणम् ।
तं सव्रतं जिन चन्द्रमहं प्रणमामि विभुं नृसुर प्रणतम् ॥१२॥ भवकर्म खानभिजित्य वलादसमा चल माप पदं रुचिरम् । स विभुः प्रवरोऽभयरोपकरो मतिदो वरदोऽस्तु सदोदयदः ||२॥ जगतां प्रभुतां भवितारकता भविता लविता भववल्लिवनम् । सुतपश्वरिता शिवमातनुतां जितशत्रु सुनन्दन आप्तवरः || ३॥
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विगय सयल दोसं पुण्णं संपत्ति गेहूं
पसम सुह नियाणं सव्वया सुद्ध देहं । fafter भव चक्कं भव्व पाहोय भाणु
अजिय जिण वरिंद भावजुन्ता णमे मो ॥ १ ॥ अमरवर नरिदोहथुय पुर्याणज्जं
तिजय विइयनामं तित्थनादं सरेमो । भवियण हियवाय पुज्जपायारविंद
पसमनिहि मुहज्जं विस्सनाहं थुणेमो ||२॥ अहिय विमल सुकझाण जोइस्सरूवं
पयडिय निहिलात्थत्थोम सच्चस्सरूवं ।
सयल हियय जोग क्लेम कज्जप्पवीणं अजिय जिगयदेवं हं नमामिप्पहाओ ॥३॥
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