Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुरुजणवयहत्थिणाउर नरीसरो पढमं तर महाचक्कवट्टिभोए महप्पभावो, जो बावन्त्तरि पुरवर - सहस्सवर - नगर-निगम जणवयवइ, बत्तीसारायवर - सहस्साणुयायमग्गो । चउदसवररयण-नवमानिहि- चउसद्विसहस्स पवर- जुवइण सुंदरबइ, चुलसी हयगय रहसय सहरससामी छन्नवइगामकोडिसामी आसी जो भारहंमि भयवं ||११|| वेटूउ ॥ तं संति संतिकरं संतिण्णंसव्त्रभया । " संति थुणामि जिणं सन्तं विउ मे || १२ || रासानंदिअयं ॥ ६७ इक्खाग विदेहनरीसर, नरवसहा मुणिवसहा, नवसारयससिसकलाणण विगयतमा बिहुअरया । अजिउत्तम तेअगुणेहिं महामुणिअमिअबला बिउलकुला पणमामि ते भवभयमूरण जगसरणा मम सरणं || १३ || चित्तलेह || देवदागविंद चन्द सूर बंद हट्ठ तुट्ठ जिट्ठ परम, लट्ठ-रूव धंत-रूप्प-पट्ट सेय - सुद्ध - निद्ध-धवल | दंत पंति संति ! सत्ति-कित्ति-मुत्ति- जुत्तिगुत्ति-पवर, दित्ततेअ वंद घेअ सव्व-लोअ भाविअप्पभावणेअ पइस मे समाहि || १४ || नारायओ || , विमलससिकाइरे असोमं वितिमिर - सूर- कराइरेअतेअं । तिअसवइ-गणाइरे अरूवं, धरणिधरप्पवराइरे असा ||१५||कुसुमलया। । सत्ते असया अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं । तव संजमे अ अजिअं, एस थुणामि जिणं अजिअं ||१६|| For Private And Personal Use Only भुअगपरिरिंगिअं || सोमगुणेहिं पावइ न तं नवसरयससी, ते अगुणेहिं पावइ न तं. नवसरयरवी । रूवगुणेहिं पावइ न तं तिअसगणवइ । सारगुणेहिं पात्रइ न तं धरणिधरइ ||१७|| खिज्जिअयं ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143