Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
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तं महानु गनई पे पंजठी रागहोसमयमोहबजियं । देव-दाणव-नरिंद-वंदि, संतिमुत्तमं महातवं नमे ।।२५।। खित्तय।। अंबरन्तरविआरणिआहिं, ललिअहंसवहुगामणिआहिं । पोणसोणिथणमालिणिआहिं, सकल-कमलदल-लोअणिआहिं
॥ २६॥ दीवयं ॥ पीण-निरंतर-थणभर-विणमिय-गायलआहिं, मणिकंचणपसिढिलमेहलसोहिअसोणितडाहिं । बरखिखि ण ने उर-सतिलय-वलय-विभूसणिआहिं, रइकर चउर-मगोहरसुंदर-दंसणिआहि ॥२७॥ चित्तक्खरा ॥ देवसुंदरीहि, पायवंदिआहिं बंदिआ य जस्स ते सुविक्कमा कमा। अपणो निमालएहिं मंरूपोहणप्पगारएहि केहि केहिंवि, अवंगतिलय-पत्तलेहनामएहिं चिल्लएहिं संगयंगयाहिं भत्तिसंनिविट्ठ वंदणागयाहिं हुं ते ते वंदिआ चुमो पुणो ॥२८॥ नारायउ ॥ तमहं जिणचंदं, अजिअंजिअमाहं । धुय सब किलेम, पयउ पणमामि ।।२९।। नंदिअयं ॥ थुअर्वादअयस्सा रे सगणदेवा गेहिं तो देववहुहिं पयर पणभिअस्सा, जस्स जगुत्तमसासणअस्सा, भात्तवसागय पिडिअयाहिं, देववरल्छ नरसाबहुयाहिं सुरवररइगुणपंडिअयाहि
॥३०॥ भासुरई ।। वंससदतांततालमेलिए, तिउक्राभिरामसदभीसए कए अ, सुइसमागणे अ सुद्धसज्जगीअपायजालघंटिआहिं, वलयमेहलाकलावनेउराभिराम सद्दमोस को अ, देवनट्टिआहिं हावभाव विभमप्पगारअहिं, नच्चिऊण अंगहारएहिं वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा, तयंतिलायसव्वसत्त संतिकारय, पसंतसवपावदोस मेसह, नमाभिसंतिमुत्तम जिग ॥३१॥नारायउ॥
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