Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सकलभुवनसौख्य-श्रेणिदाताऽवदात-चरितगुणगणेनो
द्धासमानाङ्गयष्टिः । जगतिसकलमान्यो-भव्यमद्रास्वरूपः सजयतियतिपूज्यो,
वायु भुग्योनिरीशः ॥२॥ विलसतिशिवशान्तिर्यस्यपादारविन्दे,
अघविततिरजस्त्र दूरतः संस्थिता च । नरपतिजितशत्रोरवन्याब्धिक्षपेशः सविभुजितनाथ
स्त्रायाभूत संघान् ॥३॥ कलित कलि गुणानां मानवानांनताना, निजपदमतिशोकं
दानदक्षोददानः । प्रवरमहिमभर्त्ता तारकोयःश्रितानामजित जिनवरोऽग्गै
पातुमां तीर्थनाथः ॥४॥ जननमरण शान्तियत्क्रमाम्भोजनयुग्मं सकृदपिमनुजाना
जायते पश्यतांद्राग् । कृनिज कृतिशान्तिर्मग्नतान्तिप्रकारः सजगदखिलसिद्धि
तीर्थनाथोददातु ॥५॥
(८)
विश्वेश्वरं मथितमन्मथ भूपमानं, देवं क्षमातिशयसंश्रित भूपमानम् । तीर्थाधिराजमजितं जितशत्रुजातं प्रीत्या स्तवीमि
__ यमकैर्जितशत्रुजातम् ॥१॥ विज्ञानरागविकलङ्कदशान्तमोहविज्ञानरागविकलङ्कदशान्तमोह । त्वामुल्लसत्पुलकपक्ष्मलदेह देशाः सम्यक् प्रणम्य न लभन्ति
कदाचनाऽपि ॥२॥ आनन्दकन्दलितमानसदैवतेन, स्तोतव्य यः सुरपुरन्धिकटाक्षपाशः । आनन्दकन्दलितमानसदैवतेन,
त्वामेव वीरमपहाय न मन्मथोऽन्यः ॥३॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143