Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
३६
www.kobatirth.org
(कलश)
कल सकल लोकालोक लोकन विमल केवललोचन, आनंदघनपद कीदजलदोयमहितवन विरोचनः । श्री अजित इत्थं मुदावाचक पुण्यशीलगणि स्तुतः । संभवतु भूरि विभूतये भवतामनन्त महोयुतः ||८||
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२) जन्माभिषेकसमये मेरौ शकेन्द संदब्धा:
जय
त्रिभुवनाधीश ! जय विश्वैकवत्सल ! | जय पुण्यलतोद्भेद-नवांबुद ! जगत्प्रभो ! ||१|| स्वामिन् ! विमानाद्विजया - दवतीर्णोऽसि भूतले । इदं जगत् प्रीणयितुं, सरिदोघ इवाऽचलात् ||२||
बीजं मोक्षद्रुमस्येव स्वामिन्नाऽऽजन्मसिद्धंते,
त्वत्पादपद्म भगवन्निजमैश्वर्यं
ज्ञानत्रितयमुज्जवलम् 1 शीतलत्वमिवांऽमसः || ३||
ये त्वां त्रिभुवनाधीश ! धारयते सदा हृदि । संमुखीना : श्रियस्तेषा मादर्श प्रतिबिंबवत् ||४|| उल्बणैर्बाध्यमानानां कर्मरोगैः दिष्टया त्वमगदंकार प्रतीकार त्वदर्शन सुधा सारा-स्वा दत्य मरुपांथा इव वयं न तृप्यामो रथः सारथिनेवाऽद्य कर्ण धारेण नौवि 1 पथां व्रजतु लोकोऽयं त्वया नेत्रा जगत्पते ॥७॥
शुश्रूषा -- समयाऽधिगमेन नः । कृतार्थमधुनाऽभवत् ॥ ८॥
शरीरिणाम् । करोsभवः 11411 त्रिजगत्पते ! |
मनागपि ॥६॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143