Book Title: Agam Sutra Satik 44 Nandisootra ChulikaSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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नन्दी-चूलिकामृत्रं आइसणे ( अनिगिण)सु य इच्छियवस्थाणि वहुप्पगाराणि 1८11
एएमय अन्नमय नरनारिंगणाण ताणमुवभागा। भवियएनन्भवरहिया इय सवण्ण जिना बिति ॥९॥
तो तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीउ वोयराहिं। सुसमतत्तति समक्खाया पत्राहरूपेण धीरेहि ।।१०।। तीए पुरिसाणमाउं दोन्नि उ पलियाई तह पमाणं च । दो चेव गाऊयाइं आईए भणंति समयन्नृ ॥११॥ उवभोगपरिभोगा तेसिपि य कप्पपायरोहितो। होति किलेसन विना पायं पण्णाभावेणं ॥१२॥ तो सुसमदुस्समाए पवाहरूवेण कोडिकोडीओ। अयराण दोन्नि सिट्ठा जिनेहि जियरागदासहिं ॥१३॥ तीए परिसाणमाउं एगं पलिअंतहा पमाणं च। एगं च गाउयं तीए आईए भणंति समयन्त्र ॥१४॥ . उवभोगपरिभोगा तसिपि य कप्पपायवेहितो। होति किलसेण विना नवरं पुण्णानुभावणं ॥१५॥ सुसमदुस्समावसेसे पढमजिनो धम्मनायगो भयवं। उप्पन्नां सुहपुण्णो सिप्पकलादंसओ उसभो।।१६।। तीए पुरिसाणमाउं पुव्वपमाणेण तह पमाणं च । धनुसंखा निदिटुं विसेस सुत्नाओ नायव्वं ॥१८॥
उवभोगपरिभोगा पवरोसहिमाइएहि विनेया। जिनक्किवासुदेवा सब्वेऽवि इमाइ वोलीणा ॥१९||
इगवीससहस्साईवासाणं दूसमा इमीए उ। जीवियमानुवभोगाइयाई दीसंति हायंति॥२०॥ एत्तो य किलिट्ठयरा जीयपमाणाइएहिं निद्दिट्ठा । अइसमत्ति घोरा वाससहस्साइ इगवीसा ॥२१॥ ओसप्पिणीए एसो कालविभागो जिनेहि निद्दिवो । एसोच्चिय पडिलोभं विन्नेओस्सप्पिणीएऽवि ॥२२॥ एयं तु कालचक्कं सिस्सजनानुग्गहट्ठि(ट्ठ) या भणियं।
संखेवेण महत्थो विसेस सुत्ताओ नायव्वो ॥२३॥" 'नोउसप्पिणी'त्यादि, नोत्सप्पिणीमवसप्पिणी प्रतीत्यानाद्यपर्ययवसितं, महाविदेहेषु ही नोत्सपिण्यवप्पिणीरूपः कालः, तत्र च सदैवावस्थितं सम्यक्श्रुतमित्यनाहापर्यवसितं, तथा भावतो 'ण'मिति वाक्यालङ्कारे, 'ये' इत्यनिर्दिष्यनिर्देशे ये केचन यदा पूर्वाह्नादौ जिनः प्रज्ञता जिनप्रज्ञप्ता भावाः.पदार्थाः ‘आघविजंति'तनति प्राकृतत्वादाख्यायन्ते, सामान्यरूपतया विशेषरूपतया वा कथ्यन्ते इत्यर्थः, प्रज्ञाप्यन्ते नामादिभेदप्रदर्शनेनाख्यायन्ते, तेषां नामादीनां
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