Book Title: Agam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 928
________________ शतकं-२४, वर्गः-, उद्देशकः-२३ ३६१ -:शतकं-२४ उद्देशकः-२३:मू. (८५९) जोइसिया णं भंते ! कओहिंतो उववजंति किं नेरइए० भेदो जाव सन्नपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवव० नो असन्निपंचिंदियतिरिक्ख०,जइ सनि० किंसंखेज० असंखेज०?, गोयमा! संखेजवासाउय० असंखेजवासाउय०।। सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जोतिसिएसु उवव० से णं भंते ! केवति०?, गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमहितिएसु उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्सटितिएसु उवव०, अवसेसंजहा असुरकुमारुद्देसए नवरं ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमाइं उक्को० तिन्नि पलिओवमाइं । एवं अणुबंधोवि सेसं तहेव, नवरं कालादे० जह० दो अट्ठभागपलिओवमाइं उक्को० चत्तारि पलिओवमाई वाससयसहस्समब्भहियाइंएतवियं । सो चेवजहन्नकालद्वितीएसुज्ववन्नोजह० अहोभागपलिओवमहितिएसुउको० अभागपलिओवमद्धितिएसु एस चेव वत्तव्वया नवरं कालादेसं जाणे०२। सो चेव उक्कोसकालठिइएसु उवव० एस चैव वत्तव्वया नवरं ठिती जह० पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं उक्को० तिन्नि पलिओवमाइं० एवं अणुबंधोवि, कालादे० जह० दो पलिओवमाइंदोहिं वाससयसहस्सेहिमब्भहि० उक्को० चत्ता० पलि० वाससयसहस्सम०३। सोचैव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओजहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमहितीएसु उववन्नो उक्कोसेणवि अट्ठभागपलिओवमद्वितीएसु उववत्रो, ते णं भंते! जीवा एस चेव वत्तव्वया नवरं ओगाहणाजहन्नेणंघणुहपुहुत्तंउको० सातिरेगाइंअट्ठारसघणुसयाइंठितीजहन्ने० अट्ठभागपलिओवं उक्को० अट्ठभागपलिओवमं, एवं अणुबंधोऽविसेसंतहेव, कालादे० जह० दो अट्ठभागपलिओवमाई उक्को० दो अट्ठभागपलिओवमाइंएवतियं जहन्नकालद्वितियस्स एस चेव एक्को गमो६। सोचैव अप्पणा उक्कोसकालहितिओजाओ साचेव ओहिया वत्तव्वया नवरं ठिती जहन्नेणं तिनि पलि० उक्को० तिनि पलिओवमाइं एवं अणुबंधोवि, सेसंतंचेव, एवं पच्छिमा तिन्नि गमगा नेयव्वा नवरं ठिति संवेहणंच जाणेजा, एते सत्त गमगा। जइ संखेज्जवासाउयसन्नपंचिंदिय० संखेजवासाउयाणजहेव असुरकुमारेसुउववञ्जमाणाणं तहेव नववि गमा भाणियव्या नवरं जोतिसियठिति संवेहं च जाणेज्जा सेसं तहेव निरवसेसं भाणियव्यं। जइ मणुस्सेहिंतो उवव० भेदो तहेव जाव असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए जोइसिएसुउववज्जित्तए सेणंभंते! एवंजहा असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंयस्स जोइसिएसु चेव उववजमाणस्स सत्त गमंगा तहेव मणुस्साणवि नवरं ओगाहणाविसेसो पढमेसुतिसुगमएसु ओगाहणाजहन्नेणं सातिरेगाइंनवघणुसयाइंउक्को० तिन्नि गाउयाइंमझिमगमए जह० सातिरेगाई नवघणुसयाइंउक्कोसेणवि सातिरेगाइं नव घणुसयाइं उक्को तिन्नि गाउयाई मज्झिमगमए जह० सातिरेगाइं नव घणुसयाई उक्कोसेणवि सातिरेगाइं नवघणुसयाई। पच्छिमेसुतिसुगमएसुजह० तिन्नि गाउयाइंउक्कोसे० तिनि गाउयाइंसेसंतहेवनिरवसेसं जाव संवेहोत्ति, जइ संखेजवासाउयसन्निमणुस्से० संखेजवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्या, नवरं जोतिसियठिति संवेहं च जाणेजा, सेसंतं चेव निरवसेसं । सेवं भंते ! २ ति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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