Book Title: Agam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 1044
________________ शतकं - ३३, वर्ग:-१, उद्देशक :- १ बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणंति । अपत्तसुमपुढविकाइया णं भंते! कति कम्मम्पगडीओ बंधंति ?, गोयमा ! सत्तविहबंधगावि अट्टविहबंधगावि सत्त० बंधमाणा आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति अट्ठ बंधमाणा पडिपुत्राओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ बंधति, पज्जत्तसुहुमपु० णं भंते ! कति कम्म० ?, एवं चैव । एवं सव्वे जाव पत्तबायरवणस्सइकाइया णं भंते! कति कम्पष्पगडीओ बंधंति ?, एवं चैव । अपजत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ?, गोयमा ! चोद्दस कम्मपगडीओ वेदेति, तं०-नाणावरणिजं जाव अंतराइयं, सोइंदियवज्झं चक्खिदियवज्रं घाणिदियवज्झं जिब्भिदियवज्झं इत्थिवेदवज्झं पुरिसवेदवज्झं । ४७७ एवं चउक्कणं भेदेणं जाव पजत्तवायरवणस्सइकाइया णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ?, गोयमा ! एवं चेव चोद्दस कम्पम्पगडीओ वेदेति । सेवं भंते ! २ त्ति ॥ -: शतकं -- १ प्रथमं एकेन्द्रिय शतकं उद्देशकः -२ : मू. (१०१९) कइविहा णं भंते! अनतरोववन्नगा एगिंदिया ५० ?, गोयमा ! पंचविहा अनंत वनगा एगिंदिया प० तं०- पुढविक्क० जाव वणस्सइकाइया । अनतरोववन्नगा णं भंते ! पुढविक्काइया कतिविहा पं० ?, गोयमा ! दुविहा पत्रत्ता, तंजा - सुमपुढविकाइयाय वायरपुढविकाइया य, एवं दुपएणं भेदेणं जाय वणस्सइकाइया । अनंत ववन्नगाणं भंते! पुढविक्काइया कतिविहा पं० ?, गोयमा ! दुविहा पत्रत्ता, तंजहा - सुहुमपुढविकाइयाय बायरपुढविकाइया य, एवं दुपएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया । अनंतरोववनगसुहुभपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ प० ?, गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ प० तं०-नाणावरणिजं जाव अंतराइयं, अनंतरोववन्नगबादरपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ प० ?, गोयमा ! अट्ठ कम्पप्पयडीओ प० तं०--नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, एवं जाव अनंतरोववन्नगबादरवणस्सइकाइयाणंति । अनंतरोववन्त्रगसुहुभपुढविकाइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ बंधति ?, गोयमा ! आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधंति, एवं जाव अनंतऐववन्नगबादरवणस्सइकाइयत्ति । अनंतरोववत्रगसुमपुढविकाइया णं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ वेदेति ?, गोयमा ! चउद्दस कम्पप्पगडीओ वेदेति, तं०- नाणावरणिज्जं तहेव जाव पुरिसवेदवज्झं, एवं जाव अनतरोववन्नगबादरवणस्सइकाइयत्ति । सेवं भंते! सेवं भंतेत्ति ॥ -: शतकं - ३३/१ उद्देशक:-३ : मू. (१०२०) कतिविहाणं भंते! परंपरोववन्नगा एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया प० तं०- पुढविकाइया एवं चउक्कओ भेदो जहा ओहिउद्देसए। परंपरोववन्नग अपजत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ प० ?, एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव चउद्दस वेदेति । सेवं भंते ! २ति ॥ -: शतकं - ३३/१ उद्देशकः -४ -११: - मू. (१०२१) अनंतरोगाढा जहा अनंतरोववन्नगा ४ ॥ परंपरगाढा जहा परंपरोववन्नगा ५ । अनतराहारगा जहा अनंतरोववन्नगा ६ || परंपराहारगा जहा परंपरोववन्नगा ७ ॥ अनंतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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